जब जुल्फ की कालिख में घुल जाए कोई राही,
बदनाम सही पर गुमनाम नहीं होत।
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता।
यूँ तेरी रहगुजर से दीवानावार गुजरे,
काँधे पे तेरी रख के अपना मजार गुजर।
बैठे है रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर,
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुजरे।
बहती हुई ये नदिया, घुलते हुए किनारे,
कोई तो पार गुजरे, कोई तो पार गुजरे।
तूने भी हमको देखा, हमने भी तुझको देखा,
तू दिल ही हार गुजरा, हम जान हार गुजरे।
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