ऐ दिल ए ख्वाब यारी तुमसे कर के बेकरारी अपनी ही बढ़ा दी मैने सच ये कि अकेले रहने की सजा कबूल की है
तूने भी इंतजार के मेरे लम्हें बढ़ा कर दर्द शुमार किया है दिल भी कहता है हमने तुझे समझने में ही भूल की है
न जाने कौन सा लम्हा करार का रहा है ये न जाना हमने कभी सच तो ये हमने भी तुझे समझने में ही भूल की है
न जाने क्या सोच के दिल ने इंतजार तेरा कबूल किया है अपने दिल पे ऐतबार कर के हमेशा मैंने ही भूल की है
तुमने भी क्या सोच के अपनी नज़रों में कैद किया है दिल भी कह रहा है बार बार खता समझने में ही भूल की है
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