Wednesday, March 30, 2022

प्रेरणा देते शायरों के अल्फ़ाज़

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
- अमीर मीनाई 


कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
- निदा फ़ाज़ली

अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
- जिगर मुरादाबादी 


ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी 

प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
- इक़बाल साजिद 


रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
- इरफ़ान सिद्दीक़ी 

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
- साहिर लुधियानवी 


मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा
- अमीर क़ज़लबाश 

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
- बशीर बद्र 


इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जग
- अनवर शऊर 

Monday, March 28, 2022

जरूरी तो नहीं

हर सफर में हमसफ़र हो,जरूरी तो नहीं

आसान हो मंज़िल का डगर,जरूरी तो नहीं 

अच्छी लगती है हर खूबसूरत चीज 

लेकिन हर खूबसूरत चीज अच्छी हो,जरूरी तो नहीं । 

माना चेहरा उसका सुंदर नहीं 

लेकिन दिल की भी बेकार हो जरूरी तो नहीं 

ये खुदा बने जो फिरते है 

कम से कम इंसान हो,जरूरी तो नहीं । 

दर बदर भटकते हो जिसकी खुशियों के लिए 

वो कुछ पल भी खुशी दे तुझे,जरूरी तो नहीं 

शिकवे, गिले,खफा,शिकायत हर चीज है जीवन में 

लेकिन हर बात पर पीये जहर ही,जरूरी तो नहीं। 

Tuesday, March 22, 2022

इक बार हम भी उसे,आंख भर के देखेंगे

इक बार हम भी उसे,आंख भर के देखेंगे

अपने हाथों खुद को, बर्बाद कर के देखेंगे।।

 

सारी उम्र गांव- गांव,शहर-शहर भटके हैं।। 
उसके शहर में, एक रात ठहर के देखेंगे।। 

ग़मज़दा हैं, समझ में कुछ भी नहीं आता । 
ऐसे माहौल में, कहकहा लगा कर देखेंगे।। 

ढूंढने पर भी,बात सुनने वाला नहीं मिलता। 
दिल की बात, खुद को ही सुना कर देखेंगे।। 

तारीफ़ करते हैं हिरण भी,उसकी आंखों की। 
ग़ज़ल सी आंखों की, तारीफ कर के देखेंगे।। 

बहुत गुमान था हमें',अपनी हस्ती पर। 
अब उसकी हस्ती में, मस्तूर हो कर देखेंगे।। 

Wednesday, March 16, 2022

मैं तुझे फिर मिलूँगी - अमृता प्रीतम

मैं तुझे फिर मिलूँगी

कहाँ कैसे पता नहीं 

शायद तेरे कल्पनाओं 

की प्रेरणा बन 

तेरे केनवास पर उतरुँगी 

या तेरे केनवास पर 

एक रहस्यमयी लकीर बन 

ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी 

मैं तुझे फिर मिलूँगी 

कहाँ कैसे पता नहीं 


या सूरज की लौ बन कर 

तेरे रंगो में घुलती रहूँगी 

या रंगो की बाँहों में बैठ कर 

तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी 

पता नहीं कहाँ किस तरह 

पर तुझे ज़रुर मिलूँगी 


या फिर एक चश्मा बनी 

जैसे झरने से पानी उड़ता है 

मैं पानी की बूंदें 

तेरे बदन पर मलूँगी 

और एक शीतल अहसास बन कर 

तेरे सीने से लगूँगी 


मैं और तो कुछ नहीं जानती 

पर इतना जानती हूँ 

कि वक्त जो भी करेगा 

यह जनम मेरे साथ चलेगा 

यह जिस्म ख़त्म होता है 

तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है 


पर यादों के धागे 

कायनात के लम्हें की तरह होते हैं 

मैं उन लम्हों को चुनूँगी 

उन धागों को समेट लूंगी 

मैं तुझे फिर मिलूँगी 

कहाँ कैसे पता नहीं 


मैं तुझे फिर मिलूँगी


Main Tenu Fer Milangi
I will meet you again

Kithe? Kis trah? Pata nahi
Shayad tere Takhiyl di Chinag banke
Tere Canvas te Utrangi
Ya Khore teri Canvas dey Utte
Ik Rahasmayi Lakir Banke
Khamosh Tenu Takdi Rawangi

Jaa Khore Suraj ki Loo banke
Tere Ranga vich Ghulangi
Jaa Ranga diyan Bahwa vich beth ke
Teri Canvas nu Wlangi
Pata nahi Kis Trah-Kithe
Par Tenu Zarur Milangi

Jaa Khore Ik Chashma bani Howangi
Te jivan Jharneya da Paani udd da
Main Pani diyan Bunda
Tere Pind te Malangi
Te Ik Thandak jahi banke
Teri Chhaati de naal Lagangi
Main Hor Kuch nahi Jaandi
Par Ena Jaandi
Ki Waqt jo v karega
Ae Janam Mere naal Turega

Ae Jism Mukkda hai
Tan Sab Kuch Mukk janda
Par Cheteyan dey Dhaage
Kaayenaati Kana dey Hunde
Main unha kana nu chunagi
Dhageyan nu walangi
Te tenu main fer milangi


I will meet you yet again

How and where? I know not.

Perhaps I will become a

figment of your imagination

and maybe, spreading myself

in a mysterious line

on your canvas,

I will keep gazing at you.

Perhaps I will become a ray

of sunshine, to be

embraced by your colours.

I will paint myself on your canvas

I know not how and where –

but I will meet you for sure.

Maybe I will turn into a spring,

and rub the foaming

drops of water on your body,

and rest my coolness on

your burning chest.

I know nothing else

but that this life

will walk along with me.

When the body perishes,

all perishes;

but the threads of memory

are woven with enduring specks.

I will pick these particles,

weave the threads,

and I will meet you yet again.


मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते
इक रह्स्म्यी लकीर बण के  
खामोश तैनू तक्दी रवांगी

जा खोरे सूरज दी लौ बण के
तेरे रंगा विच घुलांगी
जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के

तेरे केनवास नु वलांगी
पता नही किस तरह कित्थे
पर तेनु जरुर मिलांगी
जा खोरे इक चश्मा बनी होवांगी
ते जिवें झर्नियाँ दा पानी उड्दा
मैं पानी दियां बूंदा
तेरे पिंडे ते मलांगी
ते इक ठंडक जेहि बण के
तेरी छाती दे नाल लगांगी
मैं होर कुच्छ नही जानदी
पर इणा जानदी हां
कि वक्त जो वी करेगा
एक जनम मेरे नाल तुरेगा
एह जिस्म मुक्दा है
ता सब कुछ मूक जांदा हैं
पर चेतना दे धागे

कायनती कण हुन्दे ने
मैं ओना कणा नु चुगांगी
ते तेनु फ़िर मिलांगी


******
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ किस तरह पता नही
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी  
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज कि लौ बन कर  
तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
या रंगो कि बाहों में बैठ कर
तेरे केनवास से लिपट जाउंगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी

या फ़िर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी

और एक ठंडक सी बन कर
तेरे सीने से लगूंगी



मैं और कुछ नही जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जी भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खतम होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है 

पर चेतना के धागे

कायनात के कण होते हैं


मैं उन कणों को चुनुंगी
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !! 



ਮੈਂ ਤੈਨੂ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਕਿੱਥੇ ? ਕਿਸ ਤਰਹ ਪਤਾ ਨਈ 

ਸ਼ਾਯਦ ਤੇਰੇ ਤਾਖਿਯਲ ਦੀ ਚਿਂਗਾਰੀ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਤੇ ਉਤਰਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਦੇ ਉੱਤੇ

ਇਕ ਰਹ੍ਸ੍ਮ੍ਯੀ ਲਕੀਰ ਬਣ ਕੇ 

ਖਾਮੋਸ਼ ਤੈਨੂ ਤਕ੍ਦੀ ਰਵਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲੌ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਰਂਗਾ ਵਿਚ ਘੁਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਰਂਗਾ ਦਿਯਾ ਬਾਹਵਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਨੁ ਵਲਾਂਗੀ

ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਸ ਤਰਹ ਕਿੱਥੇ

ਪਰ ਤੇਨੁ ਜਰੁਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਇਕ ਚਸ਼੍ਮਾ ਬਨੀ ਹੋਵਾਂਗੀ

ਤੇ ਜਿਵੇਂ ਝਰ੍ਨਿਯਾਁ ਦਾ ਪਾਨੀ ਉਡ੍ਦਾ

ਮੈਂ ਪਾਨੀ ਦਿਯਾਂ ਬੂਂਦਾ

ਤੇਰੇ ਪਿਂਡੇ ਤੇ ਮਲਾਂਗੀ

ਤੇ ਇਕ ਠਂਡਕ ਜੇਹਿ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੀ ਛਾਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲਗਾਂਗੀ

ਮੈਂ ਹੋਰ ਕੁੱਛ ਨਹੀ ਜਾਨਦੀ

ਪਰ ਇਣਾ ਜਾਨਦੀ ਹਾਂ 

ਕਿ ਵਕ੍ਤ ਜੋ ਵੀ ਕਰੇਗਾ

ਏਕ ਜਨਮ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਤੁਰੇਗਾ

ਏਹ ਜਿਸ੍ਮ ਮੁਕ੍ਦਾ ਹੈ

ਤਾ ਸਬ ਕੁਛ ਮੂਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ

ਪਰ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਧਾਗੇ

ਕਾਯਨਤੀ ਕਣ ਹੁਨ੍ਦੇ ਨੇ

ਮੈਂ ਓਨਾ ਕਣਾ ਨੁ ਚੁਗਾਂਗੀ

ਤੇ ਤੇਨੁ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ


दिल को उस राह पे चलना ही नहीं

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है

मुझ पे एहसान हवा करती है 


चूम कर फूल को आहिस्ता से 

मोजज़ा बाद-ए-सबा करती है 


खोल कर बंद-ए-क़बा गुल के हवा 

आज ख़ुश्बू को रिहा करती है 


अब्र बरसते तो इनायत उस की 

शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है 


ज़िंदगी फिर से फ़ज़ा में रौशन 

मिशअल-ए-बर्ग-ए-हिना करती है 


हम ने देखी है वो उजली साअत 

रात जब शेर कहा करती है 


शब की तन्हाई में अब तो अक्सर 

गुफ़्तुगू तुझ से रहा करती है 


दिल को उस राह पे चलना ही नहीं 

जो मुझे तुझ से जुदा करती है 


ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो 

तेरे कहने में रहा करती है 


उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख 

दिल का अहवाल कहा करती है 


मुसहफ़-ए-दिल पे अजब रंगों में 

एक तस्वीर बना करती है 


बे-नियाज़-ए-कफ़-ए-दरिया अंगुश्त 

रेत पर नाम लिखा करती है 


देख तू आन के चेहरा मेरा 

इक नज़र भी तिरी क्या करती है 


ज़िंदगी भर की ये ताख़ीर अपनी 

रंज मिलने का सिवा करती है 


शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद 

कूचा-ए-जाँ में सदा करती है 


मसअला जब भी चराग़ों का उठा 

फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है 


मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक 

हाल जो तेरा अना करती है 


दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ 

बात कुछ और हुआ करती है


परवीन शाकिर 

Friday, March 11, 2022

इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ

नतीजा देखिए कुछ दिन में क्या से क्या निकल आया 
कहीं पे बीज बोया था कहीं पौधा निकल आया 
~ नवाज़ असीमी
नतीजा सुन के कई लोग बद-हवास हुए
ख़ुदा का शुक्र है हम इम्तिहाँ में पास हुए
~कैफ़ अहमद सिद्दीकी
अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा
~महशर बदायूंनी
गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर 
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ 
~ऐतबार साजिद
वफ़ा का लाज़मी था ये नतीजा
सज़ा अपने किए की पा रहा हूँ
~ हफ़ीज़ जालंधरी

Thursday, March 10, 2022

गुमसुम रात में किसी तरह नींद आई थी

रघुवीर सहाय: 

गुमसुम रात में किसी तरह नींद आई थी
इस अचानक दौड़ती बौछार ने जगा दिया
कैसा दर्द दिल में उठा इस गाने से
कोई भी कष्ट हो वह जगा देता है
ऐसे ही चौंका कर
ऐसे ही बेचारी पलकों की मजेदार नींद
उचट जाया करती है
और आज तो ऐसे कि यह लगने लगा
सभी मेरे छोटे छोटे भोर
सभी कष्ट मेरे एक हैं।

सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं

इल्म भी आज़ार लगता है मुझे
आदमी अख़बार लगता है मुझे
~ अहमद सोज़
मिरे क़बीले में ता'लीम का रिवाज न था 
मिरे बुज़ुर्ग मगर तख़्तियाँ बनाते थे 
~ लियाक़त जाफ़री
यही जाना कि कुछ न जाना हाए 
सो भी इक उम्र में हुआ मालूम 
~ मीर तक़ी मीर
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो 
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं 
~ ख़ुमार बाराबंकवी
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम' 
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया 
~ अब्दुल हमीद अदम

सुन के तिरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ 
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मैं कुछ सोच रहा हूँ 

साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी 
साग़र को ज़रा थाम मैं कुछ सोच रहा हूँ 

पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को 
अब सुन के तिरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ 

इदराक अभी पूरा तआ'वुन नहीं करता 
दय बादा-ए-गुलफ़ाम मैं कुछ सोच रहा हूँ 

हल कुछ तो निकल आएगा हालात की ज़िद का 
ऐ कसरत-ए-आलाम मैं कुछ सोच रहा हूँ 

फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअ'त 

फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ  अब्दुल हमीद अदम

थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे

थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे 

कमाल पर भी था मैं ही ज़वाल भी है मुझे 

सड़क पे चलते हुए रुक के देखता हूँ मैं 
यहीं कहीं है तू ये एहतिमाल भी है मुझे 

ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक 
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे 

उसी के लुत्फ़ से मरने से ख़ौफ़ आता है 
उसी के डर से ये जीना मुहाल भी है मुझे


सवाद-ए-शाम-ए-सफ़र है जला जला सा 'मुनीर' 
ख़ुशी के साथ अजब सा मलाल भी है मुझे

मुनीर नियाज़ी

उनके दिल तक जाना था

​जिस्म की बात नहीं थी

उनके दिल तक जाना था

लम्बी दूरी तय करने में 

वक़्त तो लगता है


गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी

लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है 


खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती 

सामने कोई भँवर है न तलातुम फिर भी
छूटती जाए है पतवार ये क़िस्सा क्या है 


हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं 
रंग बदलती इस दुनिया में सब कुछ बदल गया लेकिन
मेरे लबों पर तेरा फ़साना पहले भी था आज भी है 


ये तजरबा हुआ है मोहब्बत की राह में
खो कर मिला जो हम को वो पा कर नहीं मिला 
जब उस ने ही दुनिया का ये दीवान रचा है
हर आदमी प्यारी सी ग़ज़ल क्यूँ नहीं होता 


ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायाब और महँगी
हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें 

मंज़िल ने दिए ताने रस्ते भी हँसे लेकिन
चलते रहे अक्सर हम कुछ और तरह से भी 


सोच समझ सब ताक़ पे रख कर

प्यार में बच्चों सा मचला कर 


-हस्तीमल हस्ती




सुनते हैं के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से

​सुनते हैं के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से

इक रोज़ तुम्हें माँग के देखेंगे ख़ुदा से 

दुनिया भी मिली है ग़म-ए-दुनिया भी मिला है 
वो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से 

ऐ दिल तू उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना 
आ जाये हँसी उनको जो बैठे हैं ख़फ़ा से 

जब कुछ ना मिला हाथ दुआओं को उठा कर 
फिर हाथ उठाने ही पड़े हमको दुआ से 
आईने में वो अपनी अदा देख रहे हैं 
मर जाए कि जी जाए कोई उनकी बला से 

तुम सामने बैठे हो तो है कैफ़ की बारिश 
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा से 

राना अकबराबादी:

Friday, March 4, 2022

मैं अपने-आप में भरपूर हो जाऊँ

ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ 
बस अपने आप को मंज़ूर हो जाऊँ 

नसीहत कर रही है अक़्ल कब से 
कि मैं दीवानगी से दूर हो जाऊँ 

न बोलूँ सच तो कैसा आईना मैं 
जो बोलूँ सच तो चकना-चूर हो जाऊँ 

है मेरे हाथ में जब हाथ तेरा 
अजब क्या है जो मैं मग़रूर हो जाऊँ 

बहाना कोई तो ऐ ज़िंदगी दे 
कि जीने के लिए मजबूर हो जाऊँ 

सराबों से मुझे सैराब कर दे 
नशे में तिश्नगी के चूर हो जाऊँ 

मिरे अंदर से गर दुनिया निकल जाए 
मैं अपने-आप में भरपूर हो जाऊँ 

Rajesh Reddy

Wednesday, March 2, 2022

मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं

मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं 
लाख समझाया कि इस महफ़िल में अब जाना नहीं 

ख़ुद-फ़रेबी ही सही क्या कीजिए दिल का इलाज 
तू नज़र फेरे तो हम समझें कि पहचाना नहीं 

एक दुनिया मुंतज़िर है और तेरी बज़्म में 
इस तरह बैठे हैं हम जैसे कहीं जाना नहीं 

जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो 
कल पशेमाँ हों कि क्यूँ दिल का कहा माना नहीं 

ज़िंदगी पर इस से बढ़ कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़' 
उस का ये कहना कि तू शायर है दीवाना नहीं 

Ahmad  Faraz

Tuesday, March 1, 2022

इक कहानी सी दिल पर लिखी रह गई

इक कहानी सी दिल पर लिखी रह गई
वह नज़र जो मुझे देखती रह गई

रंग सारे ही कोई चुरा ले गया
मेरी तस्वीर अधूरी पड़ी रह गई

लोग बाज़ार में आ के बिक भी गये
मेरी कीमत लगी की लगी रह गई

वह तो कमरे से उठकर चला भी गया
बात करती हुई ख़ामुशी रह गई

दो उजाले अंधेरों में खो भी गये
हाथ मलती हुई चांदनी रह गई

बस वही अब हवा की निगाहों में हैं
जिन चराग़ों में कुछ रौशनी रह गई

वह भी चाहे, तो पूरी न हो ऐ 'वसीम'
ज़िन्दगी में कुछ ऐसी कमी रह गई।