Saturday, May 16, 2020

तेरे साथ तेरी याद आई क्या तू सचमुच आई है

तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है 
तेरे साथ तेरी याद आई क्या तू सचमुच आई है 

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का 
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है 

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रिफ़ाक़त का एहसास 
जब उस के मल्बूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है 

हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना है 
हम ने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है 


हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में 
सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है 

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे 
पागल कुछ तो सोच ये तूने कैसी शक्ल बनाई है 

इश्क़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े 
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है


हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम 
इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है 

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था 
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है 

एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ 
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
-जौन एलिया 

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