Saturday, March 14, 2020

अधूरी सिसकियों में व्यक्त कर लेते है तुम्हें...

अधूरी सिसकियों में व्यक्त कर लेते है तुम्हें...
बात ये है कि बयाँ कैसे करूँ
एक औरत भी छिपी है मुझमें
अब किसी हाथ मे पत्थर भी नही?
और इक नेकी बची है मुझमें??
मेरे दिन भी कटते हैं स्याह रातों की तरह
मुझे सुरज से कोई ख़ास फायदा नहीं मिलता
कटोचती हिचकियों में अभ्यस्त कर लेते है तुम्हें,
अधूरी सिसकियों में व्यक्त कर लेते है तुम्हें।

मलहम सी कोई आवाज़ होती है
ख्याले दर्द महकने लगता है
बरखा मित्तल 
हुआ किस्सा है तमाम करीब सनम के...
वादी ए ज़ीस्त में किस्से आलम के
हम ही से है सिलसिले रंजो ग़म के
!!
पाई भी हमने औऱ खोई भी जिंदगी
कूचे में आकर बारहा अपने हमदम के
!!
पूछो न हमसे सिला वक़्त का कभी
हुआ किस्सा है तमाम करीब सनम के
!!
टुकड़े है वो मेरे ही दिल के यहां वहां
बने है जो गुल आज उनके चमन के
बरखा मित्तल 
स्त्री काया नही ह्रदय है...
स्त्रीत्व को छूना भी एक कला है,,,
स्त्री काया नही ह्रदय है,,,
हो सके तो स्त्रीत्व को छूना,,,,
बरखा मित्तल 
याद करते करते…
काश मुझे भी
सिखा देते तुम
भूल जाने का हुनर,
मैं थक गयी हूं
हर लम्हा हर सांस
तुम्हें
याद करते करते…
बरखा मित्तल 
शायद अब जिन्दगी भी समझ गई...
ऊंगलियों से उलझी ऊंगलियां 
और हर उलझन सुलझ गई
करती रही शिकायत जिन्दगी 
शायद अब जिन्दगी भी समझ गई
अजय सिंह 
कुछ रिश्ते ज़िन्दगी में...
रह गया बाक़ी बहुत
जो कह नहीं पाए।
था बहुत बाक़ी अभी
जिसे सुन नहीं पाए।
अनकहे और अनसुने,
संग साथ में चलते रहे।
कुछ रिश्ते ज़िन्दगी में,
हमने यूँ भी हैं,निभाए।।
नीति राठौर 
बस देखते रहना...
उसको देखना ,
और फिर ,
बस देखते रहना..।
ख़ुदा जाने कि,
ख़ैरियत अब,
कहते किसको हैं...?
नीति राठौर 
फ़ासला चलता रहा...
दरमियाँ उसके मेरे, एक,
फ़ासला चलता रहा।
पर सफ़र, उसका मेरा,
साथ में ,चलता रहा।
थी उसकी ,अपनी मंज़िलें ,
जो गुजरी ,मेरी राह से।
राब्ता,उसका मेरा,
बस फ़क़त ,इतना रहा।
एक सुकून की चाह में,
पल भर किसी एक,छाँव में।
हैं अक्सर, झुलसती ख्वाहिशें,
अजनबी ,एक राह में।
वो छूकर के ,बस गुज़र गया...
कोई, उसमें पूरा ढल गया,
वो छूकर के ,बस गुज़र गया ।
एक बेख़बर एहसास सा,
फिर,अपने जहाँ में रम गया।
जा के भी ,जाता नहीं ,
बाँधती ,कोई कशिश तो है।
वो कहे,या ना कहे,
जज़्बातों में ,जुम्बिश तो है।
पलकों के कोरों में नम,
लम्हा ,वो जो ठहरा रहा।
दरकी हुई, एक आस पर,
बूँद बूँद रिसता रहा।
बूँद बूँद रिसता रहा।।
नीति राठौर 
बूँद बूँद रिसता रहा...
लम्हा ,वो जो ठहरा रहा।
दरकी हुई, एक आस पर,
बूँद बूँद रिसता रहा।
बूँद बूँद रिसता रहा।।
नीति राठौर

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