जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी खलती है बहुत,
यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत।
दावे करती हैं ज़िन्दगी, जो हर दिन तुझे भुलाने की,
किसी न किसी बहाने से, तुझे याद करती है बहुत।।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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