आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने, वफ़ा के शीशमहल में सजा लिया मैंने।
कभी न ख़त्म किया मैंने रोशनी का मुहाज़, अगर चिराग बुझा तो दिल जला लिया मैनें।।
Post a Comment
No comments:
Post a Comment