दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे
चर्चे यही रहेंगे अफ़्सोस हम न होंगे
आग़ाज़-ए-इश्क़ ही में शिकवा बुतों का ऐ दिल
दुख सब्र अभी तो क्या क्या सितम न होंगे
बुलबुल के दर्द-ए-दिल को मुमकिन नहीं मुदावा
गुलचीं के हाथ दोनों जब तक क़लम न होंगे
याद-ए-गुज़िश्तगाँ पर क्या रोएँ अब 'तरक़्क़ी'
क्या हम रवाना सू-ए-मुल्क-ए-अदम न होंगे
-आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
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