Tuesday, June 17, 2025

मुनव्वर राणा /राना '25

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हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ

हम न होंगे तो क्या कमी होगी

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फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी
दस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है
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दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता
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मैं दुनिया के मेआ'र पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मिरे मेआ'र पे पूरी नहीं उतरी
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खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगे
तुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँड लेना है
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किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए
तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना
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निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें
कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं
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हमारी दोस्ती से दुश्मनी शर्माई रहती है
हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है
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आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैं
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हम सब की जो दुआ थी उसे सुन लिया गया
फूलों की तरह आप को भी चुन लिया गया


-मुनव्वर राणा 

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