तेरी आँखों मे आज हमने झांक कर देखा।
अश्कों के हर कतरे को यूं आंककर देखा।।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तेरी आँखों मे आज हमने झांक कर देखा।
अश्कों के हर कतरे को यूं आंककर देखा।।
कमी ना छोड़ी तुमने, किसी भी बहाने की।
ज़िद हमारी भी थी तुमको अपना बनाने की।।
गर मिली है ज़िन्दगी
तो ख्याल से देखो।
जिंदगी में ज़िन्दगी से
कुछ सवाल तो पूछो।।
वैसे तो सब है
अपने यहां पर।
कोई नहीं अपना यहां
गर गौर से देखो।।
प्रेम इस तरह किया जाए
कि प्रेम शब्द का कभी ज़िक्र तक न हो
चूमा इस तरह जाए
कि होंठ हमेशा ग़फ़लत में रहें
तुमने चूमा
या मेरे ही निचले होंठ ने औचक ऊपरी को छू लिया
छुआ इस तरह जाए
कि मीलों दूर तुम्हारी त्वचा पर
हरे-हरे सपने उग आएँ
तुम्हारी देह के छज्जे के नीचे
मुँहअँधेरे जलतरंग बजाएँ
रहा इस तरह जाए
कि नींद के भीतर एक मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पर रहे
जब तुम आँख खोलो, वह भेस बदल ले
प्रेम इस तरह किया जाए
कि दुनिया का कारोबार चलता रहे
किसी को ख़बर तक न हो कि प्रेम हो गया
ख़ुद तुम्हें भी पता न चले
किसी को सुनाना अपने प्रेम की कहानी
तो कोई यक़ीन तक न करे
बचना प्रेमकथाओं का किरदार बनने से
वरना सब तुम्हारे प्रेम पर तरस खाएँगे
सुनो यारों! ख़ताओं को मेरी पहचान रहने दो
फ़रिश्ते तुम बनो, मुझे फ़क़त इंसान रहने दो
ये उम्मीदी हमारी अक्सर हमको दुख ही देती है
भुलाना सीख लो, रिश्तों में अपनी जान रहने दो
कभी जो जिन्दगी के फैसलों में मुस्किलें आए
हर लम्हें नसीहत के लिए सद्ज्ञान रहने दो
खुदी अब भी सलामत है, इरादे अब भी पुख़्ता हैं
मैं लड़ सकता हूँ तन्हा आप ये एहसान रहने दो
किताबों से न सीखोगे जो दुनिया सिखाएगी
दुनिया में भी अपनी थोड़ी सी पहचान रहने दो
ये दुनिया चार दिन की, किस बात से डरना
भले सबकुछ लुटा दो, मगर इमान रहने दो॥
सफ़र जिंदगी का. बे मज़ा लगता हैं
वो साथ हैं. फिर भी जुदा लगता हैं
बदल गयी मंजिलें राह चलतें चलतें
जैसे हर रास्ता हमसे ख़फ़ा लगता हैं
मैं ये जनता हूं वो रेह लेगा मेरे बिन
यही अगर मैं सोचूँ तो बुरा लगता हैं
वो लौट आयेगा यक़ीनन एक दिन
उसके जातें हुए क़दमों पता लगता हैं।
तुझ से उम्मीद भला क्या रख्खूँ
किस लिए क़र्ज भी तेरा रक्खूँ।
तुझ से कुछ माँगने से अच्छा है
ख़्वाब सारा ही अधूरा रक्खूँ।
तू अलग खूब बना ले दुनिया
इक अलग मैं नई दुनिया रक्खूँ।
फेर कर मुँह मुझे भी रहना है
चुप रहूँ और न रिश्ता रक्खूँ।
दर्द अपना ही ऐ दोस्त है काफी
और क्या दर्द पराया रक्खूँ।
जब से आये सनम की संगत में।
जि़न्दगी पड़ गयी है ज़हमत में।
ख्वाब की अब नहीं ज़रूरत कुछ,
उसको पाया है जब हक़ीक़त में।
प्यार शर्तों पे हो नहीं सकता,
कोई सौदा चले न उल्फ़त में।
दूर उससे सदा रहो हमदम,
जो ख़यानत करे अमानत में।
साथ उसका ’ऐ दोस्त’ भी चाहे,
काम आये जो कल ज़रुरत में।
एक बोसा होंट पर फैला तबस्सुम बन गया
जो हरारत थी मेरी उस के बदन में आ गईन हो बरहम जो बोसा बे-इजाज़त ले लिया मैं ने
चलो जाने दो बेताबी में ऐसा हो ही जाता है
- जलाल लखनवी
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
ये दिल-ए-बेताब की सारी ख़ता थी मैं न था
- बहादुर शाह ज़फ़र
बोसा आँखों का जो माँगा तो वो हँस कर बोले
देख लो दूर से खाने के ये बादाम नहीं
- अमानत लखनवी
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
- मिर्ज़ा ग़ालिब
लजा कर शर्म खा कर मुस्कुरा कर
दिया बोसा मगर मुँह को बना कर
- अज्ञात
मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किए
- जुरअत क़लंदर बख़्श
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
ये दिल-ए-बेताब की सारी ख़ता थी मैं न था
- बहादुर शाह ज़फ़र
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता है
गालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी
- निज़ाम रामपुरी
बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया
- आबरू शाह मुबारक
किसी ने दिल जो दुखाया तो तेरी याद आयी
किसी ने हाल सुनाया तो तेरी याद आयी
कभी जो दिल ने कहा चूम लूँ उसे जाकर
किसी को हाथ लगाया तो तेरी याद आयी
कई दिनों से उसे मिल नहीं रही फ़ुरसत
जो मैंने ख्वाब सजाया तो तेरी याद आयी
तुम्हें खबर ये हुनर आपकी बदौलत है
किसी को शेर सुनाया तो तेरी याद आयी
वो एक वस्ल जिसे हिज्र काटना था कभी
कोई भी मिलने जो आया तो तेरी याद आयी
बहुत कुछ हमसे कह गईं
आपकी खामोशियां...
दिल में आकर उतर गईं
आपकी खामोशियां...
बहुत कुछ हमसे कह गई...
नजरें मिलाना फिर मुस्कुराना
धीरे से पलकों को नीचे झुकाना
ये फिर से लाई है बहुत कुछ
मेरी जिंदगी में नजदीकियां
बहुत कुछ हमसे कह गई
आपकी खामोशियां...
रह गई है याद तेरी
और कुछ बाकी नहीं
रात भर हैं करवट बदलते
नींद है आती नहीं
इस कदर हमको रुलाती
आपकी खामोशियां...
दिल में उतरकर गीत सुनाती
आपकी खामोशियां...
हौले से कुछ है समझाती
आपकी खामोशियां...
सपने में भी बस ये जाती
आपकी खामोशियां...
फूल-सी है मुस्कराती
आपकी खामोशियां...।
मेरे आंसुओं से कहानी न पूछो -
मेरे आंसुओं से कहानी न पूछो
वो तुमको भी आकर रुला जाएंगे
झूठी कहानी और झूठा फसाना
नादानी वफा की बता जाएंगे।
रह-रह कर रोना और खुद
खुद को खोना, मोहब्बत के
झूठे फसानों को ढोना
वे किस्से गमे जिंदगी के सुना जाएंगे
कभी तुम वह थीं मेरी जिंदगी में थी आईं
प्रेम कहानी जो कभी हकीकत न बन पाई
उस कहानी के दर्द के नगमों को
गा-गा के तुमको सुना जाएंगे
मेरे आंसुओं से कहानी न पूछो
वो तुमको भी आकर रुला जाएंगे।
व्यथा की कथा को अधरों पर लाकर
वे मीरा की पीड़ा सुना जाएंगे।।
मेरे आंसुओं से कहानी न पूछो
वो तुमको भी आकर रुला जाएंगे
झूठी कहानी और झूठा फसाना
नादानी वफा की बता जाएंगे।राकेशधर द्विवेदी
सुबह-ओ-शाम,अश्क-ए-बहर में उतरता हूँ मैं।
मुसलसल रोज दर्द की हद से,यूं गुजरता हूँ मैं।।
काश वो भी समझ सकते,मजबूरियों को मेरी।
क्यूं अपने ही किये हर वादे से , मुकरता हूँ मैं।।
कल की रात , एक ख्वाब आया ,
हसीन पल थे वो, जो तुम्हें साथ पाया,
बात कुछ बढ़ न सकी, कशमकश में यो ही,
खुली जो नींद, तो खुद को उदास पाया ,
हसरतें दिल की फिर एक बार जगीं ,
याद फिर गुजरा, जमाना आया।
महफ़िलें पहले भी, आबाद रहीं थी,
तुम्हारे साथ का फिर,अहसास आया,
ज़िंदगी भर की कसम, ली थी कभी,
क्यों नहीं फिर, उस बात को निभाया,
फैसला क्यों किया, अपने ही हक़ में,
क्यों नहीं आपको, मेरा ख्याल आया।
नींद फिर आ न सकी, नमीं आँखों में रही,
वक्त बेवक्त सनम, तुमने अक्सर ही जगाया ,
कलम भी नम है, लिखूं आज क्या तुमको,
तुम्हारे साथ ने ही तो, हमें जीना सिखाया,
कहानी सबकी जुदा, ज़िंदगी में अपनी अपनी ,
बात वो है अलग ,किसके हिस्से में क्या आया।
बात रब की करें ,तो क्या गुनाह होगा,
फैसला उनका ही , हम सब ने निभाया,
ज़िंदगी चल न सकी ,अपने आप की मर्ज़ी,
कौन किसके भरोसे, कब तलक जी पाया ,
यादें ही ज़िंदगी को जीने के लिए रहतीं,
कौन जाके फिर, इस जहाँ में लौट पाया।
सब फासले मिट जाते ,वो गर हमे पुकार लेते।
मै आइने सजाता वोभी गर जुल्फें संवार लेते।।
बनकर हमसफर , मै भी , साथ उनके चलता ।
दरिया-ए-उलफत मे वो , गर कश्ती उतार लेते।।
नासूर बने जख्मों को भी,कुछ आराम मिलता।
बशर्ते कि चंद लम्हे ,वो यूं मिलकर गुजार लेते।।
जुगनुओं के झुरमुट , ये यूं ही ,जगमगाते रहते।
सितारों से थोड़ी सी चांदनी ,वो गर उधार लेते।।
ये मुहब्बत सारे फूल भी , कभी यूं ना गंदे होते।
मै चादरें बिछाता , मगर वो ,आंगन बुहार लेते ।।
ख़ामोशियों के मंजर भी , इतने बेवफा ना होते।
वो ख्वाबों मे मेरे आकर,थोड़ा मुझसे प्यार लेते।।
बेताबियां दिलों की , यूं इस कदर तो ना बढती।
मुझको सुकूं देकर , वो फिर ,मुझसे करार लेते।।
अपने दिल की जवां धड़कनें, मै उन्हे सौंप देता ।
मेरी जीत की खातिर , वो दिल अपना हार लेते ।।
मुसलसल बरसते सावन की जरूरत नही होती।
एक दूजे पर हम खुशी के ,गर आंसू फुहार लेते।।
मै वहीं खड़ा मिलता, वो जिस राह पे भी चलते।
इत्तेफाक से भी वो कभी यूं गर मुझे पुकार लेते।
थोड़ी सी आवारगी भी जरूरी है जिंदगी में,
कैद में रह कर अक्सर परिंदे उड़ना भूल जाते है !