एक अंकुर बोला ,
बड़ा होकर पेड़ बनूंगा।
साथ हँसेगे साथ रोए गे,
सब के साथ मे खेलूंगा ।
ज्यो-ज्यो बड़ा हुआ,
त्यों-त्यों पत्ते आये ।
नए-नए सदस्यो को,
देखकर वह मुस्काए ।
पेड़ के सारे पत्ते झगड़ने लगे,
मे ऊँचा मे ऊँचा, मे बड़ा सबसे ।
तू नीचा तू नीचा, तू छोटा सबसे,
तभी एक-एक टूटने लगे तूफां से ।
उसको याद न था की,
सब चार दिना को आये ।
तूफानों मे एक दूजे से,
टकराता और गिर जाए ।
पुराने पत्ते टूट रहे थे,
नए-नए पत्ते उग रहे थे ।
कभी पत्तो के संग डाली गिरती,
उसके सपने धीरे से टूट रहे थे ।
कहती है प्रकृति,जब तक साथ मिला ।
न बेर किसी से, दिल मे रख मेला।
क्या पता कौन पत्ता कब गिर जाए ,
कौन मंजिल से पहले छोड़ चला जाए ।
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