Sunday, July 9, 2023

ज़ख़्मों के नए फूल खिलाने के लिए

ज़ख़्मों के नए फूल खिलाने के लिए,

फिर मौसम-ए-गुल याद दिलाने के लिए आ 

मस्ती लिए आँखों में बिखेरे हुए ज़ुल्फ़ें 
आ फिर मुझे दीवाना बनाने के लिए आ 

अब लुत्फ़ इसी में है मज़ा है तो इसी में 
आ ऐ मिरे महबूब सताने के लिए आ 

आ रख दहन-ए-ज़ख़्म पे फिर उँगलियाँ अपनी 
दिल बाँसुरी तेरी है बजाने के लिए आ 

हाँ कुछ भी तो देरीना मोहब्बत का भरम रख 
दिल से न आ दुनिया को दिखाने के लिए आ 

माना कि मिरे घर से अदावत ही तुझे है 
रहने को न आ आग लगाने के लिए आ 

प्यारे तिरी सूरत से भी अच्छी है जो तस्वीर 
मैं ने तुझे रक्खी है दिखाने के लिए, आ 

आशुफ़्ता कहे है कोई दीवाना कहे है 
मैं कौन हूँ दुनिया को बताने के लिए आ 

कुछ रोज़ से हम शहर में रुस्वा न हुए हैं 
आ फिर कोई इल्ज़ाम लगाने के लिए आ 

अब के जो वो आ जाए तो 'दोस्त' उसे ले कर 
महफ़िल में ग़ज़ल अपनी सुनाने के लिए आ

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