साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की
हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की
- उफ़ुक़ लखनवी
मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
- लाला माधव राम जौहर
अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं
सरसों के खेत में कोई पत्ता हरा न था
- बिमल कृष्ण अश्क
पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसाल
जिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं
- कल्ब-ए-हुसैन नादिर
किसी ईद पर या बसंत पर वो मिलेगा उम्र के अंत पर
मैं ये सोचता हूँ कि ये भी कोई बहाना हो कहीं यूँ न हो
- साबिर ज़फ़र
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