उलटी हो गई सब *तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया (*तदबीरें - युक्तियाँ)
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
*अह्द-ए-जवानी रो-रो काटा, *पीरी में लीं आँखें मूँद (*अह्द-ए-जवानी - यौवन-काल, *पीरी - वृद्धावस्था)
यानि रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया
नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है *मुख़्तारी की (*मुख़्तारी - स्वतंत्रता)
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको *अबस बदनाम किया (*अबस - यूँ ही)
सारे *रिन्दो-बाश जहाँ के तुझसे *सजुद में रहते हैं (*रिन्दो-बाश - शराबी/ मवाली, *सजुद में रहते हैं - तेरा सम्मान करते हैं)
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझको अमान किया
सरज़द हम से बे-अदबी तो *वहशत में भी कम ही हुई (*वहशत - पागलपन)
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया
किसका क़िबला कैसा काबा कौन हरम है क्या अहराम
कूचे के उसके बाशिन्दों ने सबको यहीं से सलाम किया
ऐसे आहो-एहरम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सिहर किया, ऐजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझ को राम किया
याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया
सायदे-सीमीं दोनों उसके हाथ में लेकर छोड़ दिए (*सायदे-सीमीं - चाँदी-सी बाहें)
भूले उसके क़ौलो-क़सम पर हाय ख़याले-ख़ाम किया
ऐसे *आहू-ए-रम ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल है (*आहू-ए-रम ख़ुर्दा - ज़ख़्म खाए-हिरण)
सिह्र किया, ऐजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझको *राम किया (*राम - शांत)
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब का अब पूछते क्या हो उनने तो
*क़श्क़ा खींचा *दैर में बैठा, कबका तर्क इस्लाम किया (*क़श्क़ा खींचा - तिलक लगाया, *दैर - मंदिर)मीर तक़ी मीर
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