स्मित दिल पर लगा लू महोब्बत वो मेरी नहीं
रूह को मंजिल बनाकर बदन पर घूम आउ
मुसाफ़िर हु चोर लुटेरे सी मेरी फितरत नही
उनको नींद तो आती होंगी और क्यो न आयेगी ?
हमारी तरह करवट बदलकर सोने की आदत नहीं!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment