रग-रग में इस तरह समा कर चले गये,
जैसे मुझ को ही मुझसे चुराकर चले गये,
आये थे दिल की प्यास बुझाने के लिये,
इक आग सी लगा कर चले गये।
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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