उसे क्या देखा, खुद को ही भूल गए हम इस क़दर,
कि अपने ही घर जो आये तो औरों से पता पूछकर!
Tuesday, October 31, 2017
Sunday, October 29, 2017
जरूरी तो नहीं
जरूरी तो नहीं है कि, तुझे आँखो से ही देखूँ,
तेरी याद का आना भी, तेरे दीदार से कम नहीं!
तेरे ही ख्याल में
ये मेरी मसरूफ़ियत की हद थी,
या दीवानगी की इन्तहाँ!
तेरे क़रीब से गुजर गये,
तेरे ही खयाल में!
Sunday, October 22, 2017
गर हो गुरूर
आंखों में गर हो गुरूर,
तो इंसान को इंसान नही दिखता।
जैसे छत पर चढ जाओ,
तो अपना ही मकान नही दिखता!
अहम्
जो उड़ते हैं अहम् के आसमानों में,
जमीं पर आने में, वक़्त नहीं लगता।
हर तरह का वक़्त आता है ज़िंदगी में,
वक़्त के गुज़रने में, वक़्त नहीं लगता!
एक लम्हा
दिल से रोये मगर, होंठो से मुस्कुरा बेठे!
यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बेठे!
वो हमे एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का!
और हम उनके लिये जिंदगी लुटा बेठे!
Monday, October 16, 2017
नेकीयों का नवाब
बड़ी आसानी से निकाल देता हूँ मैं दूसरों में ऐब,
मेरा दिल जैसे नेकियों का नवाब है!
अपने गुनाहों पर सौ परदे डालकर,
मैं खुद कहता हूँ कि ज़माना बड़ा खराब है!!
याद तो करता है
मैं खुश हूँ कि कोई मेरी,
बात तो करता है।
बुरा कहता है तो क्या हुआ,
वो याद तो करता है!
Sunday, October 15, 2017
Friday, October 13, 2017
तोहमत
जिंदगी वक्त के बहाव में है,
यहां हर आदमी तनाव में है.
हमने लगा दी पानी पर तोहमत,
यह नहीं देखा कि छेद नाँव में है!
किस कदर
पलकों में आँसू और,
दिल में दर्द सोया है।
हँसने वालों को क्या पता,
रोने वाला किस कदर रोया है!
तजुर्बा
हम भी देखेंगे किसी रोज़,
खुद पर ये तजुर्बा कर के,
कैसा लगता है दिल को,
तेरी यादों से जुदा कर के!
इश्क़ भी लाजिमी है
इश्क़ होना भी लाज़मी है शायरी लिखने के लिए वर्ना,
कलम ही लिखती तो हर दफ्तर का बाबू ग़ालिब होता!
Thursday, October 12, 2017
जिदंगी
कुछ लम्हें गुजारे है,
मैंने भी अपने खास दोस्तों संग।
लोग उन्हें वक़्त कहते है और
हम उन्हें जिंदगी कहते है!
Wednesday, October 11, 2017
यादों से जुदा
हम भी देखेंगे किसी रोज़,
खुद पर ये तजुर्बा कर के।
कैसा लगता है दिल को,
तेरी यादों से जुदा कर के!
किताब ए दिल
किताब-ए-दिल का,
कोई भी पन्ना सादा नहीं होता।
निगाह उसको भी पढ लेती है,
जो लिखा नहीं होता!
Tuesday, October 10, 2017
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ!
दुष्यंत कुमार
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
-दुष्यंत कुमार
आग जलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि, ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए!
लड़ाई अपने आप से
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है!
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार, अब तो पथ यही है!
दिल पे हाथ रखो
मेरे दिल पे हाथ रखो,
मेरी बेबसी को समझो,
मैं इधर से बन रहा हूँ,
मैं उधर से बिखर रहा हूँ!
इश्क़ की कहानी
चाहूँ तो चंद लफ्जों से,
तेरा पूरा शहर भिगों दूँ,
खैर छोडो़ गुमनाम ही रहनें दो,
ये शायर के इश्क की कहानी है!
इश्क़ की आयतें
मेरी आँखों में पढ़ लेते हैं लोग,
तेरे इश्क़ की आयतें,
किसी में इतना भी बस जाना,
अच्छा नहीं होता।
ख्वाबों का वज़न
देख कर मेरी आँखें,
एक फकीर कहने लगा.
पलकें तुम्हारी नाज़ुक है,
ख्वाबों का वज़न कम कीजिये!
भीगी आँखे
भीगी नहीं थी मेरी आँखें,
कभी वक्त के मार से!
देख आज तेरी थोड़ी सी बेरुखी ने,
इन्हें जी भर के रूला दिया!!
Sunday, October 8, 2017
Tuesday, October 3, 2017
ज़ख्म
मुझे ज़ख्म कहाँ - कहाँ से मिले हैं,
जिंदगी तू छोड़ इन बातों को।
तु तो सिर्फ ये बता,
मेरा सफर कितना बाकी है!
Monday, October 2, 2017
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।
पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।
दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।
क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।
बशीर बद्र
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा
बशीर बद्र
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
बशीर बद्र
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में
बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा
बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा
बशीर बद्र
उजाले अपनी यादों के
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये
अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये
मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाये
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
बशीर बद्र
यूं ही बेसबब न फिरा करो
यूं ही बेसबब न फिरा करो, शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो
ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
-बशीर बद्र
हर उम्र में प्यार
क्या खूब रंग दिखाती है जिंदगी,
क्या इक्तेफ़ाक होता है।
प्यार में ऊम्र नही होती पर,
हर ऊम्र में प्यार होता है!
तुम्हारे नाम
दिल में हमने तुम्हारे प्यार
की दास्तान लिखी है,
ना थोड़ी ना तमाम लिखी है,
कभी हमारे लिये भी दुआ,
कर लिया करो सनम,
हमने तो हर एक सांस
तुम्हारे नाम लिखी है !❤
उम्र
एक "उम्र" के बाद,
"उस उम्र" की बातें,
"उम्र भर" याद आती हैं।
पर "वह उम्र" फिर,
"उम्र भर" नहीं आती!
थमें रास्ते
गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें,
यूँ ही मुसाफिरों की तरह।
यादें वहीं खड़ी रह जाती हैं,
थमें रास्तों की तरह!
मालूम
ज़िन्दगी में हर चीज मालूम हो,
ये जरुरी तो नहीं,
देखो ना...
तुम साँसों में रहोगे ये मालूम है,
साँसें कब तक चलेंगी ये मालूम नहीं!
तुम मिले और
“हमें कहाँ मालूम था, कि इश्क़ होता क्या है?
बस एक ‘तुम’ मिले और ज़िन्दगी, मुहब्बत बन गई!
फासला
फ़ासला भी ज़रूरी था,
चिराग़ रौशन करते वक़्त!
पर ये तजुर्बा हासिल हुआ,
हाथ के जल जाने के बाद.!!