आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कभी आह लब पे मचल गई, कभी अश्क़ आँख से ढल गए, ये तुम्हारे गम के चराग़ हैं, कभी बुझ गये कभी जल गए!
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