आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कदम यूँ ही डगमगा गए रास्ते में, वैसे संभलना हम भी जानते थे! ठोकर लगी हमें उस पत्थर से, जिसे हम कभी अपना मानते थे!!
Post a Comment
No comments:
Post a Comment