ना पूछ, मेरे सब्र की इन्तहाँ कहाँ तक है,
कर ले तू सितम, तेरी हसरत जहाँ तक है!
वफ़ा की उम्मीद जिन्हें होगी, उनको मुबारक,
हमें तो देखना है, तू बेवफ़ा कहाँ तक है!!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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