आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दिलशाद अगर नहीं तो नाशाद सही, लब पर नग़मा नहीं तो फ़रियाद सही। हमसे दामन छुडा़ के जाने वाले, जा- जा गर तू नहीं तेरी याद सही!
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