आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
जमने दो आज शाम ए महफ़िल, चलो आज शायरी की जुबां मे बहते हैं.
तुम उठा लाओ ग़ालिब की किताब, हम अपना *हाल-ए-दिल* कहते हैं !
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