Monday, September 25, 2017

शायरी की जुबांँ

जमने दो आज शाम ए महफ़िल,
चलो आज शायरी की जुबां मे बहते हैं.

तुम उठा लाओ ग़ालिब की किताब,
हम अपना *हाल-ए-दिल* कहते हैं !

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