Thursday, July 9, 2009

Daali Daali

डाली डाली पे नजर डाली,
किसी ने अच्छी तो किसी ने बुरी डाली.
मगर जिस डाली पे मैंने नज़र डाली,
कमबख्त माली ने काट डाली !!

Wednesday, July 8, 2009

Saajish

बादलों के दरमियान कुछ ऐसी साजिश हूई,
मेरा घर मिट्टी का था मेरे ही घर बारिश हुई|
आसमां को जहाँ जिद है बिजलियाँ गिराने की,
हमें भी वहीँ आदत है आशियाँ बनाने की||

zindadi jabse..

ज़िन्दगी जबसे सजल हो गयी,
अश्क तबसे ग़ज़ल हो गयी |
जबसे छोड़ी है मैंने साड़ी ख्वाहिशें,
मेरी छोटी सी कुटिया महल हो गयी ||

akal badi ya bhais

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते..
So now you decide yourself !!
अक्ल बङी या भैंस !

Tuesday, July 7, 2009

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है..

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है,

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है |

मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है,

ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है ||



समुन्दर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता,

ये आसूँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता |

मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले,

जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता ||



मुहब्बत एक एह्सासों की पावन सी कहानी है,

कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है |

यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं,

जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है ||



भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा,

हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा |

अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मुहब्बत का,

मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा ||

- डॉ कुमार विश्वास