Wednesday, July 10, 2024

कब ये पेड़ हरे होंगे फिर से

कब ये पेड़ हरे होंगे फिर से

कब ये कलियाॅं फूटेंगी
और ये फूल हसेंगे
कब ये झरने अपनी प्यास भरेंगे
कब ये नदियाॅं शोर मचाएंगी
कब ये आज़ाद किए जाएंगे सब पंछी
कब जंगल साॅंसे लेंगे

कब सब जायेंगे अपने घर
कब हाथों से ज़ंजीरें खोली जाएंगी
कब हम ऐसों को पूछेगा कोई
और ये फ़क़ीरों को भी
किस्से में लाया जाएगा
कब इन कांटों की भी क़ीमत होगी,
और मिट्टी सोने के भाव में आएगी
कब लोगों की ग़लती टाली जाएगी

कब ये हवाएं पायल पहने झूमेगी
कब अम्बर से परियां उतरेंगी
कब पत्थरों से भी ख़ुशबू आएगी
कब हंसों के जोड़ें नदियों पे बैठेंगे
बरखा गीत बनाएगी
और मोर उठा के पर,
कत्थक करते देखे जाएंगे
नीलकमल पानी से इश्क़ लड़ाएंगे
मछलियां ख़ुशी के गोते मारेंगी

कब कोयल की कूक सुनाई देगी
कब भंवरे फिर,
गुन- गुन करते लौटेंगे बागों में
और कब ये प्यारी तितलियां कलर फेकेंगी
फिर सब कुछ डूबा होगा रंगों में

कब ये दुनिया रोशन होगी
कब ये जुगनू अपने रंग में आएंगे
कब ये सब मुमकिन है
कब सबके ही सपने पूरे होंगे
कब अपने मन के मुताबिक़ होगा सब कुछ
कब ये बहारें लौटेंगी
कब वो तारीख़ आएगी
बस मुझको ही नहीं
सबको इंतज़ार है 

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