आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
झील है या झील में वो इक कँवल है ,
जो ज़ुबाँ पर चढ़ चुकी है वो ग़ज़ल है ।
बात उसकी क्या कहूँ मैं तुमसे यारों ,
प्रश्न है वो ज़िन्दगी का, वो ही हल है ।
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