Wednesday, November 22, 2023

तेरे पास बैठ कर रोना चाहता हूँ

उन खोए सपनों में

खोना चाहता हूँ ।
ऐ जिन्दगी
तेरे पास बैठ कर रोना चाहता हूँ ।
लोगों ने बदला मुझे अपने हिसाब से ।
मैं फिर अपने हिसाब का होना चाहता हूँ ।

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना 

हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना 

ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है 
मरज़ में मुब्तला कर के मरीज़ों को दवा देना 

बलाएँ लेते हैं उन की हम उन पर जान देते हैं 
ये सौदा दीद के क़ाबिल है क्या लेना है क्या देना 

ख़ुदा की याद में महवियत-ए-दिल बादशाही है 
मगर आसाँ नहीं है सारी दुनिया को भुला देना 

अकबर इलाहाबादी

Friday, November 17, 2023

जिसमें ख़ुद को तड़पाया ना जाये

मालूम था मालूम है की कुछ भी नहीं हासिल होगा, 

लेकिन वो इश्क ही क्या जिसमें ख़ुद को तड़पाया ना जाये !!

Tuesday, November 14, 2023

अपने दिल पे मुझे इख़्तियार भी तो नहीं

नसीब-ए-इश्क़ दिल-ए-बे-क़रार भी तो नहीं

बहुत दिनों से तिरा इंतिज़ार भी तो नहीं


तिरी निगाह-ए-तग़ाफ़ुल को कौन समझाए

कि अपने दिल पे मुझे इख़्तियार भी तो नहीं


~ नासिर काज़मी

ये मिरी वफ़ा का कमाल है कि निबाह कर के दिखा दिया

गो सितम ने तेरे हर इक तरह मुझे ना-उमीद बना दिया

ये मिरी वफ़ा का कमाल है कि निबाह कर के दिखा दिया


तुझे अब भी मेरे ख़ुलूस का न यक़ीन आए तो क्या करूँ

तिरे गेसुओं को सँवार कर तुझे आइना भी दिखा दिया


~ कलीम आजिज़

Saturday, November 11, 2023

तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है

पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है

पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है

चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग

पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है 


~ कुँअर बेचैन

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही

चन्द कलियाँ निशात की चुनकर

मुद्दतों महवे-यास रहता हूँ

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही

तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ


साहिर लुधियानवी

इच्छाओं की सड़क

इच्छाओं की सड़क

तो बहुत दूर तक जाती है.!

बेहतर यही है कि हम

ज़रूरतों की गली में मुड़ जायें.!


Thursday, November 9, 2023

कैफ़ी आज़मी के मशहूर शेर

जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा
बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा  


इन्साँ की ख़्वाहिशों की कोई इन्तिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए, दो गज़ कफ़न के बाद

 

मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई


पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी हो रहे
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

जो इक ख़ुदा नहीं मिलत तो इतना मातम क्यों
मुझे ख़ुद अपने क़दम का निशाँ नहीं मिलता


आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें, रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया, क़ाफ़िला तो चले


दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े


तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं


गर डूबना ही अपना मुक़द्दर है तो सुनो
डूबेंगे हम ज़रूर मगर नाख़ुदा के साथ


दीवाना पूछता है ये लहरों से बार बार
कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गईं


मैं ढूँढ़ता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता


नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता


पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा


बहार आए तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने


तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो


जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो


दीवाना-वार चाँद से आगे निकल गए
ठहरा न दिल कहीं भी तिरी अंजुमन के बाद


ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप

क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद 


मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े


कोई तो सूद चुकाए, कोई तो ज़िम्मा ले
उस इंकलाब का, जो आज तक उधार सा है


रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे

फिर वहीं लौट के जाता हूँ



कुछ ऐसा खेल रचो साथी

कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

वह मरघट का सन्नाटा तो रह-रह कर काटे जाता है

दुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है

यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम ज़ंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

यह उपदेशों का संचित रस तो फीका-फीका लगता है
सुन धर्म-कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनिया जल जाए
मानव का रूप बदल जाए
तुम आज जवानी के क्षण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

यह दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा-कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आँधी-अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नवजीवन में नवयौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का शृंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत-वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी!

गोपाल सिंह नेपाली

मैं साथ लिये जाता हूँ

 दास्ताने ज़िन्दगी, मैं साथ लिये जाता हूँ !

टूते हुए दिल को, मैं साथ लिये जाता हूँ !


मांग लेना जान भी गर ज़रूरत हो तुझको,

जो बची है ज़रा सी, मैं साथ लिये जाता हूँ !


धूप खिलती रहे सदा ही बस चेहरे पर तेरे,

गमों का हर बादल, मैं साथ लिये जाता हूँ !


निकाल देना यादों को मेरी दिल से अपने,

ये यादों का ज़खीरा, मैं साथ लिये जाता हूँ !


'मिश्र' भुगतूँगा उम्रभर मोहब्बत की सजाएँ,

तेरे प्यार की अदाएं, मैं साथ लिये जाता हूँ !

एक उम्मीद बार बार आ कर

 बीते रिश्ते तलाश करती है

ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है


जब गुज़रती है उस गली से सबा

ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है


अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार

पीले पत्ते तलाश करती है


एक उम्मीद बार बार आ कर

अपने टुकड़े तलाश करती है


बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर

अपने बेटे तलाश करती है


Gulzar

ज़िंदगी आईने के जैसी है

 मुस्कुराओ तो मुस्कुराती है ।

ज़िंदगी आईने के जैसी है ।।

एक नयी दुनिया बसाऊं बहारों के पल लिए

एक पहल मन से गुलाब की ओर

हर कदम बढ़ता उसकी खुशबू की ओर

मन को है पता कांटे भी साथ मिलेंगे

पर भरोसा है खुशी के बीज साथ चलेंगे

एक बात है ज़रा कहूं अगर हो इजाजत

शम्स बिना गुलाब की अधूरी इबादत

उसकी ये तबस्सुम ये सुर्खियां हैं पहचान

चुन न ले आधी खिली कलियां कहीं बाग़बान

कभी खयाल जी में उठता कि उसके लिए

एक नयी दुनिया बसाऊं बहारों के पल लिए

मगर चाहत की ओर ये पहल एक मन में है

और खुशबू बिखरी हुई हर तरफ गगन में है

ये कदम बढ़ता है अजब है इश्क की डोर

बंधी महक-ओ-सुर्खी से चले गुलाब की ओर

साथ में जी लो

 एक अंकुर बोला ,

बड़ा होकर पेड़ बनूंगा।

साथ हँसेगे साथ रोए गे,

सब के साथ मे खेलूंगा ।


ज्यो-ज्यो बड़ा हुआ,

त्यों-त्यों पत्ते आये ।

नए-नए सदस्यो को,

देखकर वह मुस्काए ।


पेड़ के सारे पत्ते झगड़ने लगे,

मे ऊँचा मे ऊँचा, मे बड़ा सबसे ।

तू नीचा तू नीचा, तू छोटा सबसे,

तभी एक-एक टूटने लगे तूफां से ।


उसको याद न था की,

सब चार दिना को आये ।

तूफानों मे एक दूजे से,

टकराता और गिर जाए ।


पुराने पत्ते टूट रहे थे,

नए-नए पत्ते उग रहे थे ।

कभी पत्तो के संग डाली गिरती,

उसके सपने धीरे से टूट रहे थे ।


कहती है प्रकृति,जब तक साथ मिला ।

न बेर किसी से, दिल मे रख मेला।

क्या पता कौन पत्ता कब गिर जाए ,

कौन मंजिल से पहले छोड़ चला जाए ।

इतना हमने भी न पढ़ा है खुद को

 इतना हमने भी न पढ़ा है खुद को ।

जितना लफ्ज़ों में लिखा है तुम को ।।

Saturday, November 4, 2023

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें

न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें


सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर

यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें


हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना

ब-नाम-ए-अज़्मत-ए-किरदार आओ सच बोलें


सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ़ है

पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें


तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर

कहेंगे क्या रसन-ओ-दार आओ सच बोलें


बजा कि ख़ू-ए-वफ़ा एक भी हसीं में नहीं

कहाँ के हम भी वफ़ादार आओ सच बोलें


जो वस्फ़ हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश

अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें


छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के

नज़र है आइना-बरदार आओ सच बोलें


'क़तील' जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया

किधर गए वो गुनहगार आओ सच बोलें


-Qateel Shifai

मुझे ये फूल न दे तुझ को दिलबरी की क़सम

मुझे ये फूल न दे तुझ को दिलबरी की क़सम

ये कुछ नहीं तिरे होंठों की ताज़गी की क़सम


नज़र हसीं हो तो जल्वे हसीन लगते हैं

मैं कुछ नहीं हूँ मुझे मेरे हुस्न ही की क़सम


तू एक साज़ है छेड़ा नहीं किसी ने जिसे

तिरे बदन में छुपी नर्म रागनी की क़सम


ये रागनी तिरे दिल में है मेरे तन में नहीं

परखने वाले मुझे तेरी सादगी की क़सम


ग़ज़ल का लोच है तू नज़्म का शबाब है तू

यक़ीन कर मुझे मेरी ही शायरी की क़सम


-Sahir Ludhianvi

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं

 बात मेरी कभी सुनी ही नहीं 

जानते वो बुरी भली ही नहीं 


दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं 

रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं 


लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद 

हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं 


उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से 

कभी गोया किसी में थी ही नहीं 


जान क्या दूँ कि जानता हूँ मैं 

तुम ने ये चीज़ ले के दी ही नहीं 


हम तो दुश्मन को दोस्त कर लेते 

पर करें क्या तिरी ख़ुशी ही नहीं 


-Dagh Dehalvi

Friday, November 3, 2023

तुम तो ख़ामोशियां भी सुनते थे

कितनी आवाज़ दी तुम्हें हमने ।

तुम तो ख़ामोशियां भी सुनते थे ।।