Saturday, August 1, 2020

इल्ज़ाम लगाते हो मनाया जी नहीं

जिसने फूलों को किताबों में छिपाया ही नहीं
उसने फिर लुत्फ़ मोहब्बत का उठाया ही नहीं
फोन पर फोन किया, तुमने उठाया ही नहीं
और इल्ज़ाम लगाते हो मनाया जी नहीं
वो तो बेताब रहे पास मिरे आने को
घर पे जब कोई नहीं था तो बुलाया ही नहीं
आशकी में तो मियां सर भी चले जाते हैं
और तुमने तो कभी कुछ भी गवाया ही नहीं
वस्ल (मिलन )का लुत्फ वो पा ही नही सकता, 
अपने दिलबर से कभी दूर जो आया ही नहीं।

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