Friday, January 31, 2020

हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

आप ने तस्वीर भेजी, मैं ने देखी ग़ौर से 
हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं 

~जलील मानिकपूरी

माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है, गर्दिश के समुंदर का दस्तूर निराला है!

माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है, 
गर्दिश के समुंदर का दस्तूर निराला है!

हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

आप ने तस्वीर भेजी, मैं ने देखी ग़ौर से 
हर अदा अच्छी, ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं 

~जलील मानिकपूरी

Thursday, January 30, 2020

झूठों ने झूठों से कहा कि सच बोलो

झूठों ने झूठों से कहा कि सच बोलो
सरकारी एलान हुआ है सच बोलो
कमरे में झूठों की मंडी लगी है
दरवाजे पर लिखा है सच बोलो

.........राहत इंदौरी

हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ

हुकुमत वो ही करता है, जिसका दिलों पर राज होता है
वरना यूँ तो गली के मुर्गे के सर पे भी ताज होता है।

 

मिल सके आसानी से उसकी ख्वाहिश किसे है?
ज़िद तो उसकी है, जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं।

 

जो कल तक हमारे दम पर उड़ते थे,
वो आज मुझे आसमान के बारे में बता रहे है।

 

दुश्मन हमेशा दमदार लोगो के होते है,
कमजोरो से तो लोग हमदर्दी रखते है।

 

परख ना सकोगे ऐसी शख्सियत है मेरी,
मैं अच्छा सिर्फ उन्हीं के लिए हूँ जो जाने कदर मेरी!

 

मुँह पर सच बोलने की आदत हैं मुझे,
इसलिए लोग मुझें बदतमीज कहते है!

 

हम ना बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना ही होगा!

 

अच्छे विचारों का असर आज कल इसलिए नहीं होता,
क्यूंकि लिखने वाले और पढने वाले दोनो ये समझते है कि ये दूसरों के लिए है!

पानी के बाद प्रेम ही है

जब आता है तो
आता है तरल की तरह
बहता हुआ

जब ठहरता है तो
ठहरता है ठोस की तरह
आकार सहित

जब जाता है तो
होता है पकड़ से बाहर
हवा की तरह

पानी के बाद प्रेम ही है
जो पाया जाता है
पदार्थ की तीनों अवस्थाओं में..

Monday, January 27, 2020

तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो!

क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो, 
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो! 

मलाल ये है कि, जगह तुम्हारे दिल में पा न सके!

हम तुम्हारी याद से, दामन कभी बचा नहीं सके,
लाख भुलाना चाहा, मगर भूला न सके!

ये गम नहीं कि हुए हम, इस कदर रुसवा, 
मलाल ये है कि, जगह तुम्हारे दिल में पा न सके!

तुम मिल गए थे, मगर मिलके क्या हुआ हासिल,
दिल से दिल मिले, रूह से रूह मिला न सके!! 

इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया!


चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया, 
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया! 

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई 
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया! 

इश्क़ करना ही है तो वतन से करें

कोशिश छोटी या बड़ी, जतन से करें,
और इश्क़ करना ही है तो वतन से करें! 

वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं

फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं 
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं 

~आनंद नारायण मुल्ला

ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है

कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न, 
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है! 

Sunday, January 26, 2020

मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी

~लाल चन्द फ़लक 

अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले *
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं 
- शकील बदायुनी

*पड़ाव 

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं, 
फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं! 

Saturday, January 25, 2020

अजब हालत हमारी हो गई है

अजब हालत हमारी हो गई है 
ये दुनिया अब तुम्हारी हो गई है 

बहुत ही ख़ुश है दिल अपने किए पर 
ज़माने-भर में ख़्वारी हो गई है! 

कभी पहले जैसे मिला न हो!

कभी हम भी जिस के क़रीब थे,
 दिलो-जाँ से बढ़के अज़ीज़ थे,
मगर आज ऐसे मिला है वो, 
कभी पहले जैसे मिला न हो! 

कभी पहले जैसे मिला न हो!

कभी हम भी जिस के क़रीब थे,
 दिलो-जाँ से बढ़के अज़ीज़ थे,
मगर आज ऐसे मिला है वो, 
कभी पहले जैसे मिला न हो! 

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा

जहाँ वादियों में नये फूल आयें, 
हमारी-तुम्हारी मुलाक़ात होगी!

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा, 
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी! 

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा, 
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा! 
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा, 
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा! 

मेरी ख़ता मेरी वफ़ा, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं!

सोचा नहीं अच्छा-बुरा, देखा-सुना कुछ भी नहीं, 
माँगा ख़ुदा से रात-दिन, तेरे सिवा कुछ भी नहीं! 

देखा तुझे, सोचा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे, 
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा, तेरी ख़ता कुछ भी नहीं! 

मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का, 
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया! 

Friday, January 24, 2020

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे, 
रोयेंगे बहुत लेकिन, आँसू नहीं आयेंगे! 
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं, 
दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आयेंगे! 

तू ख़िज़ाँ का फूल है मुस्करा,

मुझे पतझड़ों की कहानियाँ, 
न सुना सुना के उदास कर, 
तू ख़िज़ाँ का फूल है मुस्करा, 
जो गुज़र गया सो गुज़र गया! 

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है, 
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है! 

उसे किसी की मोहब्बत का ऐतबार नहीं, 
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है! 

मुझ से ख़फ़ा तुम तो नहीं हो

महसूस किया तुम को तो गीली हुईं पलकें, 
भीगे हुये मौसम की अदा तुम तो नहीं हो!

दुनिया को बहरहाल गिले शिकवे रहेंगे, 
दुनिया की तरह मुझ से ख़फ़ा तुम तो नहीं हो? 

मेरी पलकों पर ये आँसू, प्यार की तौहीन थे

मेरी पलकों पर ये आँसू, प्यार की तौहीन थे, 
उसकी आँखों से गिरे, मोती के दाने हो गये! 

Thursday, January 23, 2020

इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ 
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं 
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम ने उस को इतना देखा जितना देखा जा सकता था

हम ने उस को इतना देखा, जितना देखा जा सकता था, 
लेकिन फिर भी दो आँखों से कितना देखा जा सकता था! 

ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए

हमारी राह से पत्थर उठा कर फेंक मत देना, 
लगी हैं ठोकरें तब जा के चलना सीख पाए हैं! 

Wednesday, January 22, 2020

क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा'

'भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब क़िस्सा मुहब्बत का
मैं क़िस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा' @DrKumarVishwas 


Tuesday, January 21, 2020

अजीब शख्स है अपना भी पराया भी

wo mere haal pe roya bhi muskuraaya bhi
ajeeb shakhs hai apna bhi hai paraaya bhi


हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है

उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है, 
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है! 

Monday, January 20, 2020

माफ़ करना ऐ ज़िंदगी,

तुझको बेहतर बनाने की कोशिश में,
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम..
माफ़ करना ऐ ज़िंदगी,
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम..

~ गुलज़ार

दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे!

दिलों के बीच न दीवार है न सरहद है
दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे! 

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, 
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के! 

Sunday, January 19, 2020

किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा, 
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा! 

मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया

हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका 
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया 
- जिगर मुरादाबादी

किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा, 
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा! 

कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई

कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई, 
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई! 

किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा, 
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा! 

..बात ना होना भी...चुभता है बहुत.!!!-

जरूरी नहीं चुभे कोई बात ही...

बात ना होना भी...चुभता है बहुत.!!!

- अज्ञात

दुपट्टे के बिना किसी की भी बेटी अच्छी नहीं लगती!

मुझे आज भी ये तरक्की अच्छी नहीं लगती, 
दुपट्टे के बिना किसी की भी बेटी .. अच्छी नहीं लगती! 

किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है

न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है 
किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है 
- अहमद फ़राज़

उसको दफनाओ मेरी हाथ की रेखाओं में
जिस बरहमन ने कहा था के ये साल अच्छा है
- कतील शिफाई

मेरी तमाम 'उलझने' सुलझ जाएंगी..

मेरी तमाम 'उलझने' सुलझ जाएंगी..!!
जब मेरी उँगलियाँ,
तेरी उँगलियों से उलझ जाएंगी....!!

अपनी निगाहाेसे पुछ ले, क्या ओ कसुरवार नही!

परदा ना कर मुझसे, कसुर तेरे रुखसार का नही, 
अपनी निगाहाेसे पुछ ले, क्या ओ कसुरवार नही! 

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी, 
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके! 

Saturday, January 18, 2020

रिफाकत - साथ Shayari

मेरी रिफ़ाक़त से उसने उठाये फ़ायदे ही फ़ायदे
मैं भरम में रहा कि है वो हमसफ़र मेरा -

 'दामन' भोपाली

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोगरो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही 
 - दुष्यंत कुमार

जो चाहा था दुनिया में कम होता है

सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है 
जो चाहा था दुनिया में कम होता है 

ज़ख़्म तो हम ने इन आँखों से देखे हैं 
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है! 

दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी!

कुछ तो हवा सर्द थी, कुछ था तिरा ख़्याल भी, 
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी! 
- परवीन शाकिर

मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के

मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो, 
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के! 

Friday, January 17, 2020

और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला!

कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला, 
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला! 

दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है

हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल 
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है 

~दाग़ देहलवी

दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है

हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल 
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है 

~दाग़ देहलवी

दूसरी बारिश पर मिट्टी भला महकी है कभी ?

उन्हें फिर से मुहब्बत हुई है .. ये कहते हैं सभी, 
दूसरी बारिश पर मिट्टी भला महकी है कभी ?

Thursday, January 16, 2020

दाग रखें अपने पास और रोशनी बाँट दें!

"क्यों ना ...सब चाँद सी शख़्सियत अपना लें ..
दाग रखें अपने पास और रोशनी बाँट दें! 

कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में

जो वो मेरे ना रहे, 
मैं भी कब किसी का रहा, 
बिछड़ के उनसे 
सलीका न जिंदगी का रहा! 

मैँ धूंडता हुं जिसे वो वहां नहीं मिलता
नये ज़मीन नया आसमां नहीं मिलता
जो इक खुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्युं
मुझे खुद अपने कदम का निसां नही मिलता ।

बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में 
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में 

बस्ती में अपनी हिंदु मुसलमान जो बस गये
इन्सान कि शकल देखने को हम तरश गये।

पैड़ काटने वालों को ये मलूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।

- कैफी अज़मी

वो क्या गया, मेरी तनहाई भी ले गया...
रौशनी क्या छोङता, परछाई भी ले गया...
आंसू भी बहाना, अब हो गया मुश्किल,
आंखों से दिल तक की, गहराई भी ले गया।

इन्शान की ख्वाहिशो की कोई इंतेहा नही 
दो ग़ज़ ज़मीन भी चाहिए , दो ग़ज़ कफ़न के बाद ।।

इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

कैफ़ी आज़मी

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ 
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं..।

~ कैफ़ी आज़मी

मैं ढूँढ़ता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

रास्ता भूल गया या वही मंज़िल है मेरी
कोई लाया है कि ख़ुद आया हूँ,मालूम नहीं 
कहते हैं हुस्न की नज़रें भी हसीं होती हैं 
मैं भी कुछ लाया हूँ,क्या लाया हूँ मालूम नहीं।

रास्ता भूल गया, या तू ही मंज़िल है मेरी, 
तू लाया है कि ख़ुद आया हूँ, मालूम नहीं! 
कहते हैं हुस्न की नज़रें भी हसीं होती हैं, 
मैं भी कुछ पाया हूँ, क्या पाया हूँ, मालूम नहीं!

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई 
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई 
डरता हूँ कहीं ख़ुश्क न हो जाए समुंदर 
राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई 
इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी 
यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई 

#कैफ़ी_आज़मी

दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है

हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल 
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है 

~दाग़ देहलवी

हम ज़िन्दा थे,हम ज़िन्दा हैं,हम ज़िन्दा रहेंगे

हम आतिश-ए-सोज़ां में भी हक़ बात कहेंगे,
कुंदन की तरह दहर में ताबिंदा रहेंगे, 
तारीख़ बताती है कि हर दौर-ए-सितम में,
हम ज़िन्दा थे,हम ज़िन्दा हैं,हम ज़िन्दा रहेंगे !


दहर = दुनिया 
ताबिंदा = चमकता हुआ 
तारीख़ = इतिहास

इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया!

पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिरा, 
इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया! 

~अज्ञात 

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए

~उबैदुल्लाह अलीम 

तुम्हारे मुँह में किसी की ज़बाँ हो ठीक नहीं

किसी का तीर, किसी की कमाँ हो ठीक नहीं
तुम्हारे मुँह में किसी की ज़बाँ हो ठीक नहीं

तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

~फ़िराक़ गोरखपुरी 

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में 
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो 

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है 
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है 
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो! 

साहिर L

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में 
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो 

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है 
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है 
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो! 

साहिर L

बस तेरे मुस्कुराने से काम चलता है!

हमारे शहर में फूलो कि कोई दूकान नही, 

बस तेरे मुस्कुराने से काम चलता है! 

ज़रा ज़रा सी शिकायत पे रूठ जाते हैं

ज़रा ज़रा सी शिकायत पे रूठ जाते हैं 
नया नया है अभी शौक़ दिलरुबाई का! 

मुझे अब तेरी बेरुखी़ की आदत सी हो गई है

मुझे अब तेरी बेरुखी़ की आदत सी हो गई है, 
तू प्यार से बात करे तो बेगा़ना लगता है! 

खैर जो हुआ सो हुआ बातों को भुलाते हैं

खैर जो हुआ सो हुआ बातों को भुलाते हैं 

हम मिल कर फिर से एक आशियां बनाते हैं

मनाने रूठ जाने का चलन अच्छा लगा हमको

मनाने रूठ जाने का चलन अच्छा लगा हमको 

मोहब्बत का नया तर्ज़े सुखन अच्छा लगा हमको

तबस्सुम लब पे नफरत दिल में खंजर आस्तीनो में 

कुछ इस तहज़ीब की बस्ती से वन अच्छा लगा हमको! 

अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर!

मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर  , 
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर! 

हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए!

पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए  
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए! 

अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर!

मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर  , 
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर! 

बेवजह रुठ जाना तेरी आदत ताे नही

मानता हुँ मै तेरे काबील नही, मगर मेरा तुझे चाहना ग़लत ताे नही..?
मैने ताे बात भी नही की है, बेवजह रुठ जाना तेरी आदत ताे नही...?

तेरा साथ न सही, दुरी से डरता हुं, कहीं तु मेरी ज़रूरत ताे नही..?
दर्द ही मिला है तुमसे हरबार, कही मै तेरी माेहब्बत ताे नही! 

जैसें हमसफ़र से राब्ता़ नहीं!

गुनगुना लेता हूं ख़ामोशी को इस कदर,
के रूठे हों स्वर जैसें हमसफ़र से राब्ता़ नहीं! 

अच्छे हैं बहाने तेरे रूठने मनाने के

अच्छे हैं बहाने तेरे रूठने मनाने के
हैं कभी खट्टे ये तो कभी मीठे से
दे जाते हैं इक ताजा एहसास
समेट रहे इन्हें इक जमाने से..
कभी झूठे हैं बहाने रूठने के
तो सच्चे हैं बहाने ये मनाने के
जो तू समझ सके बैचेन दिल की बात
तो सुकून मिले रूह को मेरीकि प्यासी है ये इक जमाने से! 

तुम्हारे सभी नाज़ उठाएंगे हम, रूठोगे तुम और मनाएंगे हम

तुम्हारे सभी नाज़ उठाएंगे हम, 
रूठोगे तुम और मनाएंगे हम! 

मैं ख़्वाहिश बन जाऊँ, और तू रूह की तलब

मैं ख़्वाहिश बन जाऊँ, और तू रूह की तलब,
बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर।

रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया!

पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था, 
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया! 

Wednesday, January 15, 2020

जीने के लिए मरना ये कैसी सआदत है

जीने के लिए मरना

जीने के लिए मरना
ये कैसी सआदत है
मरने के लिए जीना
ये कैसी हिमाक़त है

अकेले जीओ
एक शमशाद तन की तरह
और मिलकर जीओ
एक बन की तरह

हमने उम्मीद के सहारे
टूटकर यूं ही ज़िन्दगी जी है
जिस तरह तुमसे आशिक़ी की है।

रविवार

आज रविवार है
आज ही पहली बार
सूरज की रोशनी में बाहर मुझे लाया गया
और मैं ज़िन्दगी में पहली बार
स्तम्भित हूं कि आसमान मुझसे इतनी दूर है !
इतना वह नीला है !
इतना वह विशाल है !

मैं वहां जड़ बना खड़ा रहा
फिर डरकर ज़मीन पर बैठ गया
मैंने सफ़ेद दीवार से पीठ चिपका दी
इस समय सामने वायवी स्वप्न नहीं
कोई संघर्ष नहीं, मुक्ति नहीं, पत्नी नहीं 
पृथ्वी है, सूरज है, और मैं हूं 
सुखी हूँ।

ज़िन्दगी बीत रही है

"ज़िन्दगी बीत रही है,
लूट लो वक़्त का वैभव,
इसके पहले कि सो जाओ
नींद न टूटने वाली;
भर लो काँच के पैमाने को सुर्ख़ शराब से नौजवान,
भोर हुई जग जाओ"
अपने नंगे बर्फ़ीले ठण्डे कमरे में
नौजवान उठा सुनकर चीत्कार
फ़ैक्ट्री की सीटी की,
जो देरी के लिए माफ़ नहीं करती

सम्भव है

उस दिन तक हो सकता है ज़िन्दा नहीं रहूं मैं
 हो सकता है कि लटका दें मुझे पुल के पास
लटका रहूं मैं यहां
और मेरी परछाईं कँक्रीट के पुल पर

और शायद हो सकता है
कि उस दिन के बाद भी ज़िन्दा रहूं मैं
और चला आऊं यहां
सूखे सफ़ेद बालों वाला सिर लिए

यदि ज़िन्दा रहा मैं उस दिन तक
उस दिन के बाद भी
तो शहर की दीवारों से सटकर
मैं गाऊंगा गीत और वायलिन बजाऊंगा

बूढ़ों के लिए - बूढ़ों से घिरा
वैसे ही बूढ़े - जैसाकि मैं
जैसाकि मैं - आख़िरी जंगों में बचा

तब जहां भी नज़र डालूंगा मैं
हर जगह होगी हंसी और ख़ुशी
हर शाम होगी और ज़्यादा हसीन
सुनता रहूंगा मैं पास आते
नए क़दमों की आवाज़ें
नए-नए स्वर गाने लगेंगे नए गीत

~नाज़िम हिक़मत 


मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने

सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने 
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने 

बहार आए तो मेरा सलाम कह देना 
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने!
-------
सुना करो मिरी जाँ इन से उन से अफ़्साने 

सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने 

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालो 

हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने 

मिरे जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग 

सुना है बंद किए जा रहे हैं बुत-ख़ाने 

जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा 

वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने 

बहार आए तो मेरा सलाम कह देना 

मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने 

हुआ है हुक्म कि 'कैफ़ी' को संगसार करो 

मसीह बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने! 

Kaifi Azmi Shayari

bas ek jhijak hai yahi hal-e-dil sunane mein ki tera zikr bhi aaega is fasane mein

jhuki jhuki si nazar be-qarar hai ki nahin daba daba sa sahi dil men pyaar hai ki nahin

insan ki ḳhvahishon ki koi intiha nahin do gaz zamin bhi chāhiye do gaz kafan ke baad

basti men apni hindu musalman jo bas gaye
insan ki shakl dekhne ko ham taras gaye

muddat ke baad us ne jo ki lutf ki nigah ji ḳhush to ho gaya magar aansu nikal pade

mera bachpan bhi saath le aaya gaanv se jab bhi aa gaya koi
koi to suud chukae koi to zimma le us inqalab ka jo aaj tak udhar sa hai

mera bachpan bhi saath le aaya gaanv se jab bhi aa gaya koi

koi to suud chukae koi to zimma le us inqalab ka jo aaj tak udhar sa hai

ab jis taraf se chahe guzar jaae karvan viraniyan to sab mire dil men utar gaiin

गोरियों कालियों ने मार दिया

गोरियों कालियों ने मार दिया 
जामुनों वालियों ने मार दिया 

अंग हैं या रिकाबियॉं धन की 
मोहनी थालियों ने मार दिया 

गुनगुनाते हसीन कानों की 
डोलती बालियों ने मार दिया

ऊदे ऊदे सहाब से आँचल 
रंग की जालियों ने मार दिया 

ज़ुल्फ़ की निकहतों ने जाँ ले ली 
होंट की लालियों ने मार दिया 

उफ़ वो प्यासे मोअज़्ज़ेज़ीन जिन्हें 
रस-भरी गालियों ने मार दिया 

झूमती डालियों से जिस्म, 
झूमती डालियों ने मार दिया! 

Tuesday, January 14, 2020

तू चुप रहे तो ज्यादा सुनाई देता है

हर इक सवाल जबाब ढूँढता है 
शेर भी इक नया इन्कलाब ढूँढता है 

दुहाई देता रहे जो दुहाई देता है 
कि बादशाह को ऊँचा सुनाई देता है 

हम इसलिए भी तुमको बोलने से रोकते हैं 
तू चुप रहे तो ज्यादा सुनाई देता है! 

माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए

माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए, 
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है! 

#अमीर_मीनाई

वो क्या कहना चाहते हैं, हम बखूबी समझ जाते हैं

हमारे हर सवाल के जवाब में वो सिर्फ़ मुस्कुराते हैं
वो क्या कहना चाहते हैं, हम बखूबी समझ जाते हैं।

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है!

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है 

बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है 

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे 

बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है 

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक 

मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है 

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा 

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है 

ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है 

मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है 

ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ 

जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है 

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार 

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है! 

अब मैं कोई शख़्स नहीं

अपना ख़ाका लगता हूँ 
एक तमाशा लगता हूँ 

अब मैं कोई शख़्स नहीं 
उस का साया लगता हूँ 

~जौन एलिया

सवाल आ गए आँखों से छिन के होंटों पर

सवाल आ गए आँखों से छिन के होंटों पर, 
हमें जवाब न देने का फ़ाएदा तो मिला! 

Sunday, January 12, 2020

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है!

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है 

बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है 

ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे 

बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है 

नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक 

मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है 

निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा 

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है 

ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है 

मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है 

ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ 

जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है 

मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार 

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है! 

‏‎अब सो न सकुंगा ख़्वाबों में ना आना

‏‎अब सो न सकुंगा ख़्वाबों में ना आना
पैमाना हूँ ख़ाली मुझे लबों पे ना लाना
जज़्बाए-दिल का हूँ वही क़िस्सा पुराना
अश्क़ न बहाना ओर बातें ना ब

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते, 
 जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते! 

जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बिठाएँगे

पहले-पहल लड़ेंगे तमस्ख़ुर उड़ाएँगे 
जब इश्क़ देख लेंगे तो सर पर बिठाएँगे 

तू तो फिर अपनी जान है तेरा तो ज़िक्र क्या 
हम तेरे दोस्तों के भी नख़रे उठाएँगे 

अली ज़रयून

जब उस की तस्वीर बनाया करता था

जब उस की तस्वीर बनाया करता था 
कमरा रंगों से भर जाया करता था 

पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे 
मैं जंगल में पानी लाया करता था 

थक जाता था बादल साया करते करते 
और फिर मैं बादल पे साया करता था 

बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन 
दरिया मुझ से जान छुड़ाया करता था! 

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया, 
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया! 

मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ

मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ 
बरहना शहर में कोई नज़र न आए मुझे! 

तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई!

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की, 
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई! 

मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है

ये एक बात समझने में रात हो गई है, 
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है! 

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था, 
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था

जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना

यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना 
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना

अब तलक़ ज़िंदा हूँ तिरा नाम ले लेकर!

इक शब मुझे ख़याल आया इस शब की सुब्ह न हो कभी, 

कुव्वत-ए-हिज्र ने कुछ ऐसी ता'ब दी कि अब तलक़ ज़िंदा हूँ तिरा नाम ले लेकर! 

हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ!

राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ, 
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ! 

निंद आये तो सारे ख्वाब तेरे है..।।

❤सारे शिकवे जनाब तेरे है,  
दिल पे सारे अदाब तेरे है, 💕 
तुम याद आओ तो निंद नही आती,  
निंद आये तो सारे ख्वाब तेरे है..।।

मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे!

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे, 
मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे! 

ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं...

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं 
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं...

इश्क में मरने से जीना और मुश्किल है!

गिरेबां चाक करना क्या है, 
   सीना और मुश्किल है,

   हर एक पल मुस्कुरा के, 
  अश्क पीना और मुश्किल है,

   हमारी बदनसीबी ने, 
   हमें इतना सीखाया है,

   किसी के इश्क में मरने से, 
  जीना और मुश्किल है! 

नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे है!

इन रातों से अपना रिश्ता, जाने कैसा रिश्ता है,
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे है! 

फिर भी नहीं हैं आंखें नम

लाखों सदमें ढेरों ग़म
फिर भी नहीं हैं आंखें नम,

इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम...

अज़्म शाकरी 😊

मोहब्बत के बिना है ज़िंदगी बेकार लिखती है

तू अपनी चिट्ठियों में मीर के अशार लिखती है
मोहब्बत के बिना है ज़िंदगी बेकार लिखती है,

तेरे खत तो इबारत है वफ़ादारी की कसमों से
जिन्हें में पढ़ते डरता हूँ वही हर बार लिखती है! 

मोहब्बत सोचने वालों के बस की बात थोड़ी है

अगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी है,
ज़रा सी बूँदा बाँदी है कोई बरसात थोड़ी है
ये राह इश्क़ है इसमें कदम ऐसे ही उठते है,
मोहब्बत सोचने वालों के बस की बात थोड़ी है...

फिर भी नहीं हैं आंखें नम

लाखों सदमें ढेरों ग़म
फिर भी नहीं हैं आंखें नम,

इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम...

अज़्म शाकरी 😊

मोहब्बत सोचने वालों के बस की बात थोड़ी है

अगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी है,
ज़रा सी बूँदा बाँदी है कोई बरसात थोड़ी है
ये राह इश्क़ है इसमें कदम ऐसे ही उठते है,
मोहब्बत सोचने वालों के बस की बात थोड़ी है...

तुम्हें क्या फर्क पड़ता है फिर से मुकर जाना।

करो फिर से कोई वादा कभी न बिछड़ने का,
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है फिर से मुकर जाना।

तुझे ढुढने मेरी आँख से आंसु निकले !!

राह तकते हुए जब थक गई आँखे मेरी !!

फ़िर तुझे ढुढने मेरी आँख से आंसु निकले !!

कभी न समझ पाये हम

तुझसे नाराज होकर,
           तुझसे ही बात करने का मन।
ये दिल का सिलसिला भी,
              कभी न समझ पाये हम।।

इक कारोबार है मोहब्बत के नाम पर ।

मोहब्बत नीलाम हो जाती है दौलत के नाम पर
मैं फ़क़त माँ को देख लेता हूँ इबादत के नाम पर

इस ज़ालिम अहद में वजूदे इश्क़ कहां बचा, 
इक कारोबार है मोहब्बत के नाम पर ।

तू बस ख़्वाब बनकर आने का वादा तो कर।

तू कहे तो सो जाऊँ, फिर ना जागूँ कभी,
तू बस ख़्वाब बनकर आने का वादा तो कर।

हक़ीक़त में ना सही ख्वाबों में ही मुलाक़ात करें!

चाँद को छोड़ अब, चलो सितारों की बात करें,
हक़ीक़त में ना सही ख्वाबों में ही मुलाक़ात करें! 

उसकी यादों को रुखसत तो कर ले..

हमें भी सुकूँ की नींद आयेगी..
पहले उसकी यादों को रुखसत तो कर ले..

हक़ीक़त में ना सही ख्वाबों में ही मुलाक़ात करें!

चाँद को छोड़ अब, चलो सितारों की बात करें,
हक़ीक़त में ना सही ख्वाबों में ही मुलाक़ात करें! 

हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे

हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

~क़तील शिफ़ाई

परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ

सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हँसो और हँसते हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में

हमीं पे रात भारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा

यही क़िस्मत हमारी है सितारो तुम तो सो जाओ

तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया

ये बाज़ी हम ने हारी है सितारो तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो रो कर हमारा हाल दुनिया से

ये कैसी राज़दारी है सितारो तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद जाएगी हम भी सो ही जाएँगे

अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ 

कौन डूबेगा किसे पार उतरना है

कौन डूबेगा किसे पार उतरना है 'दोस्त' 
फ़ैसला वक़्त के दरिया में उतर कर होगा! 

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में

किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में, 
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं! 

Saturday, January 11, 2020

गाहे गाहे बस अब यही हो क्या

गाहे गाहे बस अब यही हो क्या 
तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या 

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ 
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या 

याद हैं अब भी अपने ख़्वाब तुम्हें 
मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या 

बस मुझे यूँही इक ख़याल आया 
सोचती हो तो सोचती हो क्या बस अब यही हो क्या 
तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या 

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ 
मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या 

याद हैं अब भी अपने ख़्वाब तुम्हें 
मुझ से मिल कर उदास भी हो क्या 

बस मुझे यूँही इक ख़याल आया 
सोचती हो तो सोचती हो क्या 

अब मिरी कोई ज़िंदगी ही नहीं 
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या 

क्या कहा इश्क़ जावेदानी है! 
आख़िरी बार मिल रही हो क्या 

हाँ फ़ज़ा याँ की सोई सोई सी है 
तो बहुत तेज़ रौशनी हो क्या 
मेरे सब तंज़ बे-असर ही रहे 
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या 

दिल में अब सोज़-ए-इंतिज़ार नहीं 
शम-ए-उम्मीद बुझ गई हो क्या 

इस समुंदर पे तिश्ना-काम हूँ मैं 
बान तुम अब भी बह रही हो क्या 

~जौन एलिया

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

भूल  शायद  बहुत बड़ी कर ली 
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली 
- बशीर बद्र

ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं

जो हैं मज़लूम उन को तो तड़पता छोड़ देते हैं 

ये कैसा शहर है ज़ालिम को ज़िंदा छोड़ देते हैं 

अना के सिक्के होते हैं फ़क़ीरों की भी झोली में 

जहाँ ज़िल्लत मिले उस दर पे जाना छोड़ देते हैं 

हुआ कैसा असर मा'सूम ज़ेहनों पर कि बच्चों को 

अगर पैसे दिखाओ तो खिलौना छोड़ देते हैं 

अगर मा'लूम हो जाए पड़ोसी अपना भूका है 

तो ग़ैरत-मंद हाथों से निवाला छोड़ देते हैं 

मोहज़्ज़ब लोग भी समझे नहीं क़ानून जंगल का 

शिकारी शेर भी कव्वों का हिस्सा छोड़ देते हैं 

परिंदों को भी इंसाँ की तरह है फ़िक्र रोज़ी की 

सहर होते ही अपना आशियाना छोड़ देते हैं 

तअ'ज्जुब कुछ नहीं 'दाना' जो बाज़ार-ए-सियासत में 

क़लम बिक जाएँ तो सच बात लिखना छोड़ देते हैं

~अब्बास दाना 

Thursday, January 9, 2020

क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया, वो आया भी तो किसी और काम से आया

क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया, 
वो आया भी तो किसी और काम से आया! 

Wednesday, January 8, 2020

और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह

और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ 
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह 

~जाँ निसार अख़्तर

Monday, January 6, 2020

बदल गया है ज़माना बदल गया हूँ मैं

ग़लत नहीं वो जो शिकवे अब आप को होंगे, 
बदल गया है ज़माना बदल गया हूँ मैं! 

कुछ ख़ार कम तो कर गये गुज़रे जिधर से हम

माना कि इस जहाँ को न गुलज़ार कर सके 
कुछ ख़ार कम तो कर गये गुज़रे जिधर से हम 
- साहिर लुधियानवी

ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह!

सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं, 
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह! 

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था, वो बात उन को बहुत नागवार गुज़री है!

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था, 
वो बात उन को बहुत नागवार गुज़री है! 

~फ़ैज़ 

Sunday, January 5, 2020

फिजां में घुल रही है महक अदरक की

फिजां में घुल रही है महक अदरक की,

आज सर्दी भी चाय की तलबगार हो गई l

अदाएं तो देखिए बदमाश चायपत्ती की,

जरा दूध से क्या मिली शर्म से लाल हो गई ।

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे 
दिल को क्यूँ ज़िद है कि आग़ोश में भरना है उ
    
सम्त ~ direction 

यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया

यूँ देखिए तो आँधी में बस इक शजर गया, 
लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया! 

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी -सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो हो गए मजबूर
इसमें क्या इख्तियार है अपना

जिसको तुम आसमान कहते हो “मीर“
वो दिलों का गुबार है अपना

बरस जाओ कि राख हो जाऊँ ये शैलाब मिटे

तुम ज़रा मुस्कुराओ कि मेरे ग़म का कुहरा मिटे, 
बरस जाओ कि राख हो जाऊँ ये शैलाब मिटे! 

मैं एक फूल हूँ वो मुझको रख के भूल गया

हर एक शब् मेरी ताज़ा अज़ाब में गुजरी 
तुम्हारे बाद तुम्हारे ही ख्वाब में गुजरी 
मैं एक फूल हूँ वो मुझको रख के भूल गया 
तमाम उम्र उसी की किताब में गुजरी

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में! 
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में! 

हम होश में हो के वहां, मदहोश हो गए

मयखाने की रस्मों का ज़रूरी है एहतराम, 
हम होश में हो के वहां, मदहोश हो गए

मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले

मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
#जौन_एलिया

इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे

इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे 
दिल के अँगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे 
~मख़दूम मुहिउद्दीन ग़ज़ल:

ishq ke sho.ale ko bhaḌkāo ki kuchh raat kaTe 

dil ke añgāre ko dahkāo ki kuchh raat kaTe 

hijr meñ milne shab-e-māh ke ġham aa.e haiñ 

chārasāzoñ ko bhī bulvāo ki kuchh raat kaTe 

koī jaltā hī nahīñ koī pighaltā hī nahīñ 

mom ban jaao pighal jaao ki kuchh raat kaTe 

chashm o ruḳhsār ke azkār ko jaarī rakkho 

pyaar ke naame ko doharāo ki kuchh raat kaTe 

aaj ho jaane do har ek ko bad-mast-o-ḳharāb 

aaj ek ek ko pilvāo ki kuchh raat kaTe 

koh-e-ġham aur girāñ aur girāñ aur girāñ 

ġham-zado teshe ko chamkāo ki kuchh raat kaTe

मकताब ए इश्क का दस्तूर यह निराला देखा

मकताब ए इश्क का दस्तूर यह निराला देखा,
उस को छुट्टी ना मिली जिसने सबक याद किया

मकताब : School

ख़ुद-कुशी जुर्म भी है सब्र की तौहीन भी है

ख़ुद-कुशी जुर्म भी है सब्र की तौहीन भी है, 
इस लिए इश्क़ में मर मर के जिया जाता है! 

Saturday, January 4, 2020

दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी

दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी 
हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी 
जो आ के न जाए वो बुढ़ापा देखा 
जो जा के न आए वो जवानी देखी 
- मीर अनीस

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले 

- मिर्ज़ा अज़ीम बेग़

Friday, January 3, 2020

उसे भी खूबसूरत कहा करो!

वो सजती है सिर्फ तुम्हारे लिए
उसकी तारीफ़ किया करो! 
काजल अगर थोड़ा ऊपर नीचे हो
उसे भी खूबसूरत कहा करो! 

ख़ामोश हो क्यूँ दादे -जफ़ा क्यूँ नहीं देते

ख़ामोश हो क्यूँ दादे -जफ़ा क्यूँ नहीं देते 
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते 

रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी 
रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते

~ अहमद फ़राज़

Thursday, January 2, 2020

और साथ मिरा उसको गवारा भी नहीं है

पहले तो ये मौजें भी हिमायत में खड़ी थीं, 
अब मेरा मददगार किनारा भी नहीं है! 

जाता भी नहीं छोड़के वो मुझको अकेला, 
और साथ मिरा उसको गवारा भी नहीं है! 

मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए

मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊं तिरी ख़ुशबू आए

वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए

इन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उस की बातें कि गुल-ओ-लाला पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आंखों में आंसू आए

बशीर बद्र 

अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे!

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं, 
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे! 

कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत, 
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे! 

राहत इंदौरी के लिखे गए 10 मशहूर शेर

राहत इंदौरी के लिखे गए 10 मशहूर शेर

1. न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा

हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

2. उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

3. दोस्ती जब किसी से की जाए

दुश्मनों की भी राय ली जाए

4. नए किरदार आते जा रहे हैं

मगर नाटक पुराना चल रहा है

5. हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

6. मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता

यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी

7. घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

8. ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

9. अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है

उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते 

10. एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए

मेरी आंखों में तिरे प्यार का आंसू आए
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊं तिरी ख़ुशबू आए

वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए

इन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए

उस की बातें कि गुल-ओ-लाला पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख़ को जादू आए

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आंखों में आंसू आए

बशीर बद्र 

"ये अलग बात है के खामोश खड़े रहते है,

"ये अलग बात है के खामोश खड़े रहते है,
फिर भी जो बड़े लोग है, वो बड़े रहते है,

ऐसे दरवेशों से मिलता है हमारा शिगरा,
जिनके जूतो मे भी ताज पड़े रहते है! 

- @rahatindori 

तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई

तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई 
वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई 


मैं और तुम तो वही, पर बात कुछ नयी हो।

कल सुबह की धूप और शाम कुछ नयी हो, 
मैं और तुम तो वही, पर बात कुछ नयी हो।