आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
शहर में रूख्सती महफूज़ है दहलीज तक, गाँव में अब भी सड़क तक छोड़ने आते हैं लोग।
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