आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
फ़िज़ा में महकती शाम हो तुम; प्यार का छलकता जाम हो तुम; सीने में छुपाये फिरते हैं याद तुम्हारी; ज़िन्दगी का दूसरा नाम हो तुम।
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