निगाहों में मंज़िल थी, गिरे,
और गिर कर संभलते रहे।
हवाओं ने तो बहुत कोशिश की,
मगर चिराग आँधियों में भी जलते रहे।
और गिर कर संभलते रहे।
हवाओं ने तो बहुत कोशिश की,
मगर चिराग आँधियों में भी जलते रहे।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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