बादलों के दरमियान कुछ ऐसी साजिश हूई,
मेरा घर मिट्टी का था मेरे ही घर बारिश हुई|
आसमां को जहाँ जिद है बिजलियाँ गिराने की,
हमें भी वहीँ आदत है आशियाँ बनाने की||
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
1 comment:
I LIKED IT ASUTOSH VERY MUCH
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