कुछ इस तरह दिल से इश्क़ उस का निकालना है
बग़ैर गुल्लक को तोड़े सिक्का निकालना हैमैं जानता हूँ मोहब्बतों का मक़ाम-ए-आख़िर
सो उस के कमरे से मुझ को पंखा निकालना है
निकाल फेंकी घड़ी कलाई से उस की दी हुई
अब अपने ख़ातिर इक-आध घंटा निकालना है
ज़मीन खोदें जिन्हें बनानी हैं क़ब्र-गाहें
ज़मीन जोतें जिन्हें ख़ज़ाना निकालना है
निकाल लाया जो मुझ को लहरों की साज़िशों से
मुझे समुंदर से अब वो तिनका निकालना है
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