वक्त का दिखा, कुछ सख़्त मिजाज़ इन दिनों..
बदला हुआ सा है, सभी का अंदाज़ इन दिनों..।
पंछी तेरे हौसले को, किसकी है नज़र लगी हुई..
देखी नहीं आसमां में, ऊंची कोई परवाज़ इन दिनों..।
मंजिलों से पहले ही, खत्म हो गए हैं रास्ते सभी..
अंधेरी गलियों से हो रहा, सफ़र का आगाज़ इन दिनों..।
बहुत अदब से रहता हूं, निगाह भी झुकाए हुए..
बदले हुए से है सब तेरे शहर के, रिवाज़ इन दिनों..।
फ़ाकाकशों की फेहरिस्त में नाम आ जाए किसी तरहा..
महलों में रहते हैं, कैसे कैसे मोहताज़ इन दिनों..।
ख़ुद की पहचान बने तो, चाहे मिटे ईमान सभी..
कैसे दौरा–दौर से गुज़र रहा है, ये समाज़ इन दिनों..।
सब लाइलाज़ मर्ज़ ही, क्यूंकर पेश आए जाते हैं..
चारागार आख़िर किस–किस का करें, इलाज़ इन दिनों..।
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