ऐ जिन्दगी तुझे अब तक ना समझ पाया हूँ
जिसे भी देखा रोता हुआ ही पाया हूँ
दिलासा फूलों की काँटों में ही उलझाया
रात-भर जागकर भी दर्द ही उठाया हूँ
सवाल उलझता गया उलझन अभी भी बाकी है
टूटा जो आइना हर बार समेटता आया हूँ
आँखों में ख्वाब हसीन दिल में उम्मीद बड़ी
शराफ़त तड़फी बस इल्ज़ाम ही तो पाया हूँ
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