नींद मुझको नहीं आ रही है
रात कैसी सितम ढा रही है |
दर्द में छोड़ो पन्द ओ नसीहत
बात कोई नहीं भा रही है |
ज़ुल्फ़ से रुख़ छुपा जा रहा है
जैसे काली घटा छा रही है |
क्या निज़ाम ए चमन अब है बदला
ख़ुशबू बाद ए ख़िजां ला रही है |
फ़ायदे के लिए क़ायदे की
बात दिल से निकल जा रही है |
बेवफ़ाई से साकित हुआ हूं
नब्ज़ ए ग़म सिर्फ़ चल पा रही है |
"ख़ुशियों से मर ही न जाना
ज़िन्दगी अब क़रीब आ रही है |
No comments:
Post a Comment