कल का लिखूं आज मैं
ये तम्मना मुद्दतों से है
तेरे ना होने से मेरी ज़िन्दगी में
बस इतनी कमी सी हे
मैं चाहे लाख मुस्कुरालूं
इन आखों में आज भी नमी सी है
जो पानी आँख से छलक जाता है
उस पानी को क्या कहा जाएगा
जो हम तुम से ना कह सके
उसको मन से चाहा प्यार कहा जाएगा
वक़्त की हकीक़त को समझना था
वो हमने समझने लिया
जो लिखना था कल
वो हमने आज लिख लिया
तुझ जैसा मिलेगा कोई
ये हमने कैसे सोच लिया
गुमनाम है तू
आज भी बेवजह बदनाम मैं हूँ
काफी सालों से तेरे लिए तन्हां हूँ परेशान हूँ
काबिल हूँ तेरे ये बताने के लिए सबूत ढूंढ रहा हूँ
तेरे सामने आकर भी अपना वजूद ढूंढ रहा हूँ
होठों पर मुस्कान तो है
पर पूरी हसीं तो नही है
मैं चाहे लाख मुस्कुरालूं
जीवन में हमेशा तेरी कमी है
कल का लिखूं आज मैं
ये तम्मना मुद्दतों से है |
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