Wednesday, January 13, 2021

तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता


दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है 
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता 

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा 
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा 

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ 
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ 

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब 
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम 

हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा 
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे 

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़' 
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ 

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे 

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो 
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए 

मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी 
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है 

गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा 
मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा 

मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर 
ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूँ 

सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है 
ज़िंदगी ने मुझे कुछ तुम से ज़ियादा पहना 

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है 
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त 

कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ 
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते 

ऐसी तारीकियाँ आँखों में बसी हैं कि 'फ़राज़' 
रात तो रात है हम दिन को जलाते हैं चराग़ 

शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर 
मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला 

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़ 
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़ 

जब भी दिल खोल के रोए होंगे 
लोग आराम से सोए होंगे 

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की 
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले

ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे 
सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है

No comments: