रौशनियाँ घर की मद्धम कर जाऊँ मैं
- शारिक़ कैफ़ी
अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
छोड़ना है तो बहाने की ज़रूरत क्या है
-नदीम गुल्लानी
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
- शाहिद कबीर
ज़रूरत बे-ज़रूरत बोलती है
जहाँ दौलत हो दौलत बोलती है
- माजिद अली काविश
ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख
अपनी चाहत को किसी और की चाहत से न देख
- शाहिद कमाल
ग़ैर को दर्द सुनाने की ज़रूरत क्या है
अपने झगड़े में ज़माने की ज़रूरत क्या है
- अज्ञात
ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
रौशनी हो तो उन्हें लोग बुझाने लग जाएँ
- शबाना यूसुफ़
अम्न हर शख़्स की ज़रूरत है
इस लिए अम्न से मोहब्बत है
- अज्ञात
हर इक फ़साना ज़रूरत से कुछ ज़ियादा है
ग़म-ए-ज़माना ज़रूरत से कुछ ज़ियादा है
- अरशद लतीफ़
अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
- ऐतबार साजिद
मुफ़्लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़ारों पे ये एलान किया जाए
- क़तील शिफ़ाई
ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना
यहाँ कोई किसी का अपना कब है
- अता आबिदी
अगर इतनी मुक़द्दम थी ज़रूरत रौशनी की
तो फिर साए से अपने प्यार करना चाहिए था
- यासमीन हमीद
मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
हम तिरे शहर में आए हैं मोहब्बत के लिए
- अज़हर नवाज़
न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे
- राजेन्द्र कृष्ण
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