और भी वो याद आया देर तक
तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके
सच बोलने के तौर-तरीक़े नहीं रहे
पत्थर बहुत हैं शहर में शीशे नहीं रहे
तुम उस खामोश तबीयत पे तंज़ मत करना
वो सोचता है बहुत और बोलता कम है
सच्चाई को अपनाना आसान नहीं
दुनिया भर से झगड़ा करना पड़ता है
शे’र तो रोज़ ही कहते हैं ग़ज़ल के लेकिन
आ! कभी बैठ के तुझसे करें बातें तेरी
सफ़र में मुश्किलें आएं तो जुर्रत और बढ़ती है
कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है
हर एक सितम पे दाद दी हर जख्म पे दुआ
हमने भी दुश्मनों को सताया बहुत दिनों
खुशहाल होना मेरा, अज़ीज़ों से पूछिये
पत्ता हरा हुआ तो शजर को बुरा लगा
एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
-नवाज़ देवबंदी
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