शेर भी इक नया इन्कलाब ढूँढता है
दुहाई देता रहे जो दुहाई देता है
कि बादशाह को ऊँचा सुनाई देता है
हम इसलिए भी तुमको बोलने से रोकते हैं
तू चुप रहे तो ज्यादा सुनाई देता है!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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