इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है
- अमीर क़ज़लबाश
कब निकलता है अब जिगर से तीर
ये भी क्या तेरी आश्नाई है
- दाग़ देहलवी
मोहब्बत तीर है और तीर बातिन छेद देता है
मगर निय्यत ग़लत हो तो निशाने पर नहीं लगता
- अहमद कमाल परवाज़ी
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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