आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया, पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया,
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए, ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया!
~कुँअर बेचैन
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