कल उम्र ने तलाशी ली,
जो लम्हें जेब से बरामद हुए.
कुछ ग़म के थे,
कुछ नम से थे,
कुछ टूटे हुए थे,
जो सही सलामत मिले,
वो बचपन के थे!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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