आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कल उम्र ने तलाशी ली, जो लम्हें जेब से बरामद हुए. कुछ ग़म के थे, कुछ नम से थे, कुछ टूटे हुए थे, जो सही सलामत मिले, वो बचपन के थे!
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