Saturday, December 3, 2011

गाल, गुलाबी, Til

यूँ तो होते हैं हजारों गाल गुलाबी,
गुलाबी गालों पे तिल बरी मुश्किल से होते है..

Saturday, November 5, 2011

माजरा

दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है
-ग़ालिब


O innocent heart, what happened to you
What is the cure for this affliction
My affections are met with coldness
O God, what is happening?

ख़ुशी

ख़ुशी तो फिर ख़ुशी है रंज को समझा ख़ुशी हमने
तेरी ख़ातिर बदल डाला निज़ामे-ज़िन्दगी हमने

याराना

गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गये
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गये
-ख़ातिर ग़ज़नवी

दीपावली

HAPPY DIPAVALI

केवल छज्जों और चौबारों पर ही नहीं,
आस्था का एक दीप हमारे रिश्तों की मुंडेर पर भी

रिश्ता

दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजिये रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये
-निदा फ़ाज़ली

जरुरत

दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है

शहर

कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
यह नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

दोस्ती

मुहब्ब्तों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

राह

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

दुआ का असर

वो बड़ा रहीमो-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुम्हें भूलनी की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

Shayari

मैं शकील दिल का हूँ तर्जुमां के मुहब्बतों का हूँ राज़दां.
मुझे फ़ख़्र है मेरी शायरी मेरी ज़िन्दगी से जुदा नहीं..
-शकील बदायुनी


I, Shakil, translate what hearts feel
And am privy to the secrets of lovers
I am proud that my poetry is not
divorced from my life's reality

Silsila

आरज़ुओं का सिलसिला कब ख़त्म होगा ऐ दोस्त,
खिल गये गुल तो कलियाँ और पैदा हो गयीं..

Sunday, July 24, 2011

ओ वासंती पवन हमारे घर आना।

बहुत दिनों के बाद खिड़कियां खोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
जडे़ हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल-भरे थे आले सारे कमरों में।
उलझन और तनावों के रेशों वाले
पुरे हुए थे जाले सारे कमरों में।
बहुत दिनों के बाद संकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में
लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक प्यारे-प्यारे रंगों में
बहुत दिनों के बाद खुशबुएं घोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।
पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा सा था अन्तर्मन में
लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर भावों के आंगन में
बहुत दिनों के बाद चिरइयां बोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।

-
डॉ. कुंअर बेचैन

Sunday, April 17, 2011

बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं

सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

- द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

Thursday, April 7, 2011

कितने रावण

‘किस रावण की काटूँ बाहें, किस लंका में आग लगाऊँ।
दर-दर रावण, दर-दर लंका, इतने राम कहाँ से लाऊँ।’