जिन्दगी की बेपनाह पेचीदगियों में,
बच्चों की-सी मस्ती न छूटे.
और जिन्दगी की तमाम मस्तियों ,
सच्चाई और ईमान न छूटे.
जिन्दगी से और क्या चाहिये!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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