Tuesday, March 25, 2025

इंसान परेशान बहुत है



*अच्छी थी, पगडंडी अपनी।*

*सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।*


*फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।*

*सबके पास, काम बहुत है।।*


*नहीं जरूरत, बूढ़ों की  अब।*

*हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।*

  

*उजड़ गए, सब बाग बगीचे।*

*दो गमलों में, शान बहुत है।।*


*मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।*

*कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है।।*


*पीते हैं, जब चाय, तब कहीं।*

*कहते हैं, आराम बहुत है।।*


*बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री।*

*व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है।।*


*आदी हैं, ए.सी. के इतने।*

*कहते बाहर, घाम बहुत है।।*


*झुके-झुके, स्कूली बच्चे।*

*बस्तों में, सामान बहुत है।।*


*नहीं बचे, कोई सम्बन्धी।*

*अकड़, ऐंठ, अहसान बहुत है।।*


*सुविधाओं का ढेर लगा है।*

*पर इंसान, परेशान बहुत है।*


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