कुछ तबियत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत ना हुई
जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फ़साना बदला
रस्म-ए-दुनिया को निभाने के लिए हम से रिश्तों की तिजारत ना हुई
दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा न लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसी से ये शिकायत ना हुई
छोड़ कर घर को कहीं जाने से घर में रहने की इबादत थी बड़ी
झूट मशहूर हुआ राजा का सच की संसार में शोहरत ना हुई
वक़्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना न मिलादोस्ती की तो निभाई न गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुईनिदा फ़ाज़ली
Sunday, March 2, 2025
कुछ तबियत ही मिली ऐसी
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