तुम ख़ामोशी बन इन लबों पे रहती हो कोई बात हो क्या,
अक्सर ख़ुद ही से छुपी सी रहती हो कोई राज़ क्या,
हर शख्स तरसता है तेरे इक दीदार को
जरा हमें भी बताओ कोई आफताब हो क्या।
तुम ख़ामोशी बन इन लबों पे रहती हो,कोई अनकही बात हो क्या.अक्सर ख़ुद ही से छुपी सी रहती हो,दिल में छुपाए कोई राज़ क्या.
No comments:
Post a Comment